यह बहुत दिलचस्प तुलना है कि मनमोहन सिंह को सक्रिय राजनीति में लाने वाले पीवी नरसिंह राव का अंतिम संस्कार किस तरह से हुआ और मनमोहन सिंह का कैसे हुआ है? दोनों के बीच कई समानताएं और कई संयोग भी है। दिसंबर का ही महीना था 2004 में जब नरसिंह राव का निधन हुआ था। 23 दिसंबर को 83 साल की उम्र में नरसिंह राव गुजरे थे और कांग्रेस नेतृत्व ने उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड में नहीं रखने दिया था। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार बन गई थी और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। लेकिन कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में थी, जिन्होंने तय किया कि पांच साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिंह राव को न्यूनतम सम्मान मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर नरसिंह राव के कामकाज से सोनिया गांधी नाराज थीं और नाराजगी ऐसी थी कि उन्होंने दिल्ली में नरसिंह राव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया और उनकी समाधि भी नहीं बनने दी।
हो सकता है कि मनमोहन सिंह चाहते हों कि नरसिंह राव का पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय में रखा जाए। हो सकता है कि वे यह भी चाहते हों कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में हो और दिल्ली में उनकी समाधि बने। लेकिन सोनिया गांधी और अहमद पटेल के सामने यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सोचें, तब भी उनको कमजोर प्रधानमंत्री बताने पर काफी लोग आहत हो जाते हैं। बहरहाल, नरसिंह राव के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखा है कि नरसिंह राव का निधन हुआ तो वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनके मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित आवास पर पहुंचे। वहां अहमद पटेल ने उनको अलग ले जाकर कहा कि वे नरसिंह राव के परिजनों से बात करें और नरसिंह राव का पार्थिक शरीर हैदराबाद ले जाने के लिए मनाएं। हालांकि संजय बारू ने यह काम नहीं किया। बाद में तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी ने यह काम किया। हालांकि हैदराबाद में भी नरसिंह राव का अंतिम संस्कार बहुत अच्छे तरीके से नहीं हुआ, जिसके बारे में विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में बहुत विस्तार से लिखा है।