Manipur violence, केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व ने मणिपुर पर फैसला करने का मन बना लिया है। फैसला मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने का होगा। अब मामला सिर्फ टाइमिंग का है। माना जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व दो राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव में कोई भटकाव नहीं चाहता है इसलिए मामला टला हुआ है। लेकिन फैसले के लिए आधार बना कर तैयार कर दिया गया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र और झारखंड का चुनाव खत्म होने के बाद किसी भी समय फैसला हो सकता है।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को इस बात की जानकारी है कि चुनाव के बाद उनको हटाया जाएगा। इसलिए वे भी अपनी तैयारी कर रहे हैं। वे आसानी से समर्पण करने वाले नहीं है। कहा जा रहा है कि उत्तर भारत के राज्यों में जैसे भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री बदलता है उस तरह का बदलाव असम को छोड़ कर पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में संभव नहीं है। इसलिए एक बार जो बन गया है वह बना हुआ है।
मणिपुर में हिंसा: कुकी-मैती संघर्ष या राजनीतिक साजिश?
मणिपुर के ताजा घटनाक्रम में यानी नए सिरे से हिंसा भड़कने के पीछे कई लोग साजिश देख रहे हैं। उनका मानना है कि कुर्सी बचाने के चक्कर में कुकी और मैती के बीच का झगड़ा बढ़ाया जा रहा है। इसके पीछे निहित स्वार्थ वाले लोग काम कर रहे हैं। ध्यान रहे इससे पहले जब भी बीरेन सिंह की कुर्सी खतरे में आई है तब तब मैती समुदाय के लोगों ने आगे आकर उनकी रक्षा की है। तभी कई लोग से संयोग नहीं मान रहे हैं कि कुकी समुदाय के लोगों ने थाने और सीआरपीएफ कैंप पर हमला किया और उसके बाद मैती समुदाय के छह लोग अगवा हो गए। पिछले एक हफ्ते में 10 कुकी उग्रवादी मारे गए हैं तो कम से कम से पांच निर्दोष मैती भी मारे गए हैं, जिसके बाद मैती समुदाय के लोग आक्रशित हैं। वे विधायकों और मंत्रियों के घर पर हमला कर रहे हैं।
बीरेन सिंह की कुर्सी संकट में: केंद्र का बढ़ता हस्तक्षेप
सवाल है कि क्या राज्य में अव्यवस्था बनेगी और हिंसा जारी रहेगी तो बीरेन सिंह की कुर्सी बची रहेगी? कहा नहीं जा सकता है क्योंकि केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार या मुख्यमंत्री से राय लिए बगैर छह नए क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी आफस्पा लागू करने का फैसला किया। इससे सेना और अर्ध सैनिक बलों को कार्रवाई के ज्यादा अधिकार मिल गए। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि केंद्र सरकार आफस्पा वापस ले। लेकिन इसकी कोई संभावना नहीं है।
केंद्र ने उनकी तमाम राजनीति के बावजूद पुलिस, अर्ध सैनिक बल और सेना की एकीकृत कमान उनके हाथ में नहीं सौंपी और अब सेना व अर्ध सैनिक बलों के अधिकार बढ़ा दिए हैं। इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने सुरक्षा का मामला कैसे अपने हाथ में लेने की पहल की है यह इस बात से भी पता चलता है कि अर्ध सैनिक बलों की 20 बटालियन यानी दो हजार जवान मणिपुर भेजे गए हैं। अफास्पा का दायरा बढ़ाना और दो हजार अतिरिक्त जवान भेजना यह सिर्फ संयोग नहीं है। ध्यान रहे इससे ठीक पहले राज्य के 19 भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को बदलने के लिए भाजपा आलाकमान को पत्र लिखा था। इस अभियान में कुछ और लोगों के जुड़ने का इंतजार किया जा रहा है।