महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ जोड़ियां बहुत मशहूर रही हैं। भाजपा की राजनीति में किसी जमाने में प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे की जोड़ी थी। इसी तरह बाला साहेब ठाकरे और शरद पवार की जोड़ी ने लंबे समय तक महाराष्ट्र की राजनीति को अपने हिसाब से संचालित किया। अब वहां एक नई जोड़ी स्थापित हुई है, देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार की। अब इन दोनों के हिसाब से महाराष्ट्र की राजनीति चलेगी। तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद फड़नवीस अपनी पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं की छाया से मुक्त हो गए हैं और साथ ही मराठा क्षत्रप शरद पवार के साए से भी निकल गए हैं। अब उनका अपना स्थापित वजूद है और वे सर्वोच्च नेतृत्व की होड़ में हैं तो दूसरी ओर अजित पवार भी अंततः अपने चाचा शरद पवार की छाया से मुक्त हो गए हैं। उनकी स्वतंत्र राजनीति स्थापित हो गई है। अब वे केयर ऑफ शरद पवार नहीं हैं। उन्होंने बारामती सहित समूचे पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में निर्णायक जीत हासिल की है। शरद पवार अब उम्र के ऐसे पड़ाव पर हैं, जहां से वापसी करने की संभावना बहुत कम है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि अजित पवार का कद बढ़ाने में देवेंद्र फड़नवीस की बड़ी भूमिका रही है। असल में जिस समय शिव सेना टूटी और एकनाथ शिंदे अलग हुए उस समय शिंदे के समर्थन से फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनना था। परंतु शीर्ष नेतृत्व के शह मात के खेल में फड़नवीस पिट गए और उनको अपनी सरकार में एक साधारण मंत्री रहे एकनाथ शिंदे की सरकार में मजबूरी में उप मुख्यमंत्री बनना पड़ा। उस समय से वे शिंदे को संतुलित करने की उधेड़बुन में थे। शरद और अजित पवार भी किसी तरह से एकनाथ शिंदे को बैलेंस करना चाह रहे थे। तभी अजित पवार के अलग होने से फड़नवीस को मौका मिला और बदनामी होने की तमाम आशंकाओं को दरकिनार करके उन्होंने अजित पवार को गठबंधन में शामिल कराया और उप मुख्यमंत्री बनवाया।
लोकसभा चुनाव में तो फड़नवीस का यह दांव काम नहीं आया लेकिन विधानसभा चुनाव में उनका दांव कामयाब रहा। अजित पवार मराठा बोल लेने में कामयाब रहे और भाजपा को भी उन्होंने मराठा वोट दिलवाए। इसका नतीजा महायुति को मिला विशाल जनादेश है। हालांकि इस जनादेश के बाद भी मामला कई दिन तक उलझा रहा। जून 2022 की तरह इस बार भी मराठा या पिछड़ा सीएम बनाने की चर्चा दिल्ली से शुरू हो गई। लेकिन फड़नवीस एक धोखा खा चुके थे इसलिए वे सावधान थे। उन्होंने अजित पवार को अपने साथ जोड़े रखा। अंत में फड़नवीस और अजित पवार की जोड़ी को कामयाबी मिली। फड़नवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार वित्त मंत्रालय के साथ उप मुख्यमंत्री बने। एकनाथ शिंदे गृह मंत्रालय की मांग करते रह गए लेकिन उन्हें दूसरे मंत्रालयों से समझौता करना पड़ा। अजित पवार ने फड़नवीस की मदद की तो उन्होंने भी बदले में उनकी हर तरह से मदद की। अजित पवार अब तक दिल्ली की राजनीति से दूर रहते थे। लेकिन अब दिल्ली उनको भी पसंद आने लगी है। उन्होंने फड़नवीस की सलाह पर प्रफुल्ल पटेल के साथ साथ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को भी दिल्ली में स्थापित किया है। वे राज्यसभा सांसद बनी हैं और पहली बार में उनको जनपथ रोड पर 11 नंबर का टाइप सात का बंगला मिला है। यह बंगला शरद पवार के छह, जनपथ के ठीक सामने है। पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी छह, जनपथ में ही रहती हैं।