लोकसभा चुनाव के नतीजों ने शरद पवार को एक बार फिर मराठा नायक के तौर पर स्थापित किया है। उनकी पार्टी सिर्फ 10 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से नौ सीटों पर जीती। 90 फीसदी का स्ट्राइक रेट राज्य में किसी पार्टी का नहीं रहा। भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था फिर भी नौ ही सीट जीत पाई। शरद पवार का साथ छोड़ कर गए अजित पवार की पार्टी चार सीटों पर लड़ कर सिर्फ एक सीट जीत पाई। तभी अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अजित पवार की असली एनसीपी में भगदड़ मचने की संभावना है। पार्टी के कई नेता घर वापसी करना चाहते हैं। भाजपा और दूसरी पार्टियों में भी जो एनसीपी नेता चले गए थे उनकी वापसी शुरू हो गई है। गौरतलब है कि शरद पवार की बनाई एनसीपी के 40 विधायक पाला बदल कर अजित पवार के साथ चले गए थे। इस दम पर अजित पवार उप मुख्यमंत्री बने। लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद उनकी पार्टी के विधायकों के सामने हार का खतरा दिख रहा है। दूसरी पार्टियों के नेता भी मान रहे हैं कि यह शरद पवार की आखिरी लड़ाई है और उनके प्रति लोगों की सहानुभूति है।
तभी पार्टी के एक बड़े नेता सूर्यकांत पाटिल ने एनसीपी के शरद पवार खेमे में वापसी की है। वे 10 साल पहले ही एकीकृत एनसीपी छोड़ कर चले गए थे। वे भाजपा में रहे और केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। 2014 में एनसीपी छोड़ कर गए सूर्यकांत पाटिल को शरद पवार ने एनसीपी में शामिल कराया। इस मौके पर उन्होंने कह दिया कि उनक साथ छोड़ कर गए नेताओं की घर वापसी में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने सबको अवसर दिया है। पवार सीनियर ने कहा कि वे अपनी पार्टी के नेताओं के साथ विचार विमर्श करके उन नेताओं को साथ लेने को तैयार हैं, जो पार्टी छोड़ गए थे। हालांकि उन्होंने एक शर्त भी लगा दी। शरद पवार ने कहा कि वे उन्हीं नेताओं को वापस लेंगे, जो उनका साथ छोड़ कर गए फिर भी पार्टी या परिवार के बारे में उलटे सीधे बयान नहीं दिए और उनको कमजोर करने का काम नहीं किया। यानी जो चुप रहे और ज्यादा राजनीति नहीं की, लोकसभा चुनाव में भी बहुत सक्रिय नहीं रहे उन तमाम विधायकों की शरद पवार के साथ वापसी हो सकती है। असल में अजित पवार को लेकर भाजपा में भी बहुत सकारात्मक सोच नहीं है।