संघ प्रमुख मोहन भागवत के 10 दिन के रांची प्रवास से राज्य में होने वाले चुनाव को लेकर संघ की गंभीरता जाहिर हुई है। इसी तरह महाराष्ट्र में भी विधानसभा का चुनाव होने वाला है और वहां को लेकर भी संघ काफी गंभीर है। माना जा रहा है कि उसकी सबसे बड़ी चिंता गठबंधन की है। भाजपा ने राज्य में शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी के अजित पवार गुट से गठबंधन किया है। इस गठबंधन यानी महायुति की राज्य में सरकार है और शिंदे मुख्यमंत्री हैं। लेकिन संघ को अजित पवार को लेकर चिंता है। बार बार संघ की ओर से कहा जा रहा है कि यह बेमेल गठबंधन है और इसका नुकसान हो सकता है। संघ शिव सेना के साथ गठबंधन स्वाभाविक मानता है लेकिन अजित पवार की पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर वह बहुत असहज है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद संघ की असहमति जाहिर हुई थी और अब फिर संघ से जुड़ी मराठी पत्रिका ‘विवेक’ में छपे एक लेख में यह असहमति जाहिर हुई है। इस लेख में कहा गया है कि अजित पवार के साथ गठबंधन अस्वाभाविक है और उसकी वजह से कार्यकर्ताओं में निराशा है। उनमें उत्साह का संचार नहीं हो पा रहा है। इससे पहले संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ में संघ के विचारक रतन शारदा ने एक लेख लिख कर इस गठबंधन पर सवाल उठाया था। गौरतलब है कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से महायुति को सिर्फ 17 सीटें मिली हैं। पिछली बार 23 सीट जीतने वाली भाजपा नौ सीटों पर सिमट गई। अजित पवार की पार्टी चार सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ एक सीट जीत पाई। विधानसभा चुनाव में भी अजित पवार की पार्टी के योगदान को लेकर आशंका बनी हुई है। लेकिन सवाल है कि क्या भाजपा इस आशंका में तालमेल खत्म कर सकती है? जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा में भी इस पर विचार हो रहा है। खासतौर से बदली हुई स्थितियों में जब लोकसभा चुनाव के बाद अजित पवार की पार्टी के अनेक नेता पाला बदल कर शरद पवार के साथ जाने को तैयार हैं। गठबंधन में सीट बंटवारे पर चर्चा शुरू करने से पहले भाजपा सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।