यह लाख टके का सवाल है कि क्या महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी अकेले लड़ेगी? लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह सवाल उठने लगा है क्योंकि भाजपा को सहयोगी पार्टियों की उपयोगिता समझ में नहीं आ रही है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने सात सीटें जरूर जीतीं, लेकिन उसका फायदा भाजपा को नहीं मिला। इसी तरह अजित पवार की एनसीपी को चार सीटें मिली थीं और वह एक सीट नहीं जीत पाई। उससे ज्यादा चिंता भाजपा को इस बात की है कि अजित पवार के सहारे पार्टी ने पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा वोट की जो उम्मीद पाली थी वह पूरी नहीं हुई। मराठा वोट पूरी तरह से शरद पवार के साथ रहा। तभी भाजपा को शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ तालमेल करके लड़ने में कोई फायदा नहीं दिख रहा है।
भाजपा के जानकार नेताओं का कहना है कि अगर ये दोनों पार्टियां महायुति में यानी भाजपा के गठबंधन में बनी रहती हैं तो भाजपा को डेढ़ सौ से 160 सीटों पर लड़ना होगा और तब मौजूदा हालात में वह एक सौ सीट का आंकड़ा नहीं पार कर पाएगी। ध्यान रहे पिछले दो चुनावों में भाजपा ने एक सौ का आंकड़ा पार किया। 2014 में जब वह अकेले लड़ी थी तो उसे सवा सौ के करीब सीटें मिलीं। 2019 में एकीकृत शिव सेना के साथ लड़ने पऱ उसकी सीटों कम होकर 105 रह गईं। तभी भाजपा के नेता अकेले लड़ने में फायदा देख रहे हैं। उनको दो फायदे दिख रहे हैं। पहला फायदा तो यह है कि अकेले लड़ने पर सभी 288 सीटों पर लड़ेंगे। दूसरा फायदा यह है कि शिव सेना का एकनाथ शिंदे गुट अकेले लड़ेगा तो वह उद्धव ठाकरे का वोट काटेगा और अजित पवार अकेले लड़ कर शरद पवार का वोट काटेंगे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को चारकोणीय या पांचकोणीय बना देने में भाजपा को फायदा दिख रहा है। आमने सामने के चुनाव में लोकसभा जैसे नतीजे आने की पूरी संभावना है। यानी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के महाविकास अघाड़ी को पूर्ण बहुमत मिल सकता है। भाजपा को एक तीसरा फायदा यह भी दिख रहा है कि अकेले लड़ने पर चुनाव बाद के गठबंधन का रास्ता खुला रहेगा।