महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव में उद्धव ठाकरे के करीबी मिलिंद नार्वेकर चुनाव लड़े और हार गए। सवाल है कि जब महाविकास अघाड़ी यानी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के गठबंधन के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं थी और उनके पास जितने विधायक थे उतने से वे दो सीटें ही जीत सकते थे तो तीसरी सीट पर उम्मीदवार क्यों दिया गया? और अगर उम्मीदवार दिया गया तो उसकी जीत सुनिश्चित करने के लिए क्या राजनीति हुई? ऐसा तो हो नहीं सकता कि उद्धव ठाकरे ने ऐसे ही अपने सबसे करीबी सहयोगी को चुनाव में उतार दिया! तीसरी सीट जीतने के लिए महाविकास अघाड़ी को सिर्फ चार वोट का बंदोबस्त करना था। लेकिन वह भी नहीं हो सका। यह स्थिति तब रही, जबकि एक महीने पहले ही महाविकास अघाड़ी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को बुरी तरह से हराया।
लोकसभा के नतीजों के बाद कहा जा रहा था कि अजित पवार की पार्टी के 18 विधायक शरद पवार के संपर्क में हैं और वापसी करना चाहते हैं। इसी तरह एकनाथ शिंदे खेमे के कई विधायकों के बारे में चर्चा थी कि वे उद्धव के साथ लौटना चाहते हैं। लेकिन विधान परिषद के चुनाव में किसी ने उद्धव के उम्मीदवार को वोट नहीं किया और उलटे कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी। कांग्रेस का अपना उम्मीदवार जीत गया और शरद पवार ने जिसको समर्थन दिया था वह भी जीत गया लेकिन उद्धव का उम्मीदवार नहीं जीता। जानकार सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ दिन में होने वाले विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की मोलभाव की क्षमता कुछ कम करने के लिए कांग्रेस और शरद पवार ने अपने को दूर रखा और उनके उम्मीदवार की जीत के लिए काम नहीं किया।