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शिंदे, पवार की दबाव की राजनीति

महाराष्ट्र में लोकसभा का चुनाव संपन्न हो गया है। पांचवें चरण तक राज्य की सभी 48 लोकसभा सीटों पर मतदान हो गया। नतीजे चार जून को आएंगे। लेकिन उससे पहले ही सत्तारूढ़ महायुति यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के बीच विधानसभा चुनाव को लेकर सीट बंटवारे का विवाद शुरू हो गया है। पिछली बार यानी 2019 में राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से भाजपा 152 और शिव सेना 124 सीटों पर लड़ी थी। बाकी 12 सीटें दूसरी सहयोगी पार्टियों को दी गई थी। बाद में शिव सेना भाजपा से अलग हो गई। लेकिन फिर पार्टी टूटी और शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट को भाजपा ने सीएम बनवाया। इसी तरह विपक्षी गठबंधन की पार्टी एनसीपी टूटी और अजित पवार को भाजपा ने उप मुख्यमंत्री बनाया। पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में एनसीपी 125 सीटों पर लड़ी थी। 

अब एकनाथ शिंदे गुट को असली शिव सेना माना गया है और अजित पवार गुट को असली एनसीपी माना गया है। पिछली बार एकीकृत शिव सेना 124 और एनसीपी 125 सीट पर लड़ी थी। सो, ये दोनों पार्टियां इसी अनुपात में सीट मांग रही हैं। दूसरी ओर भाजपा को हर हाल में डेढ़ सौ सीट पर चुनाव लड़ना है। शिंदे और अजित पवार गुट का कहना है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में समझौता किया और भाजपा के लिए 28 सीट छोड़ी इसलिए विधानसभा में भाजपा को उनके लिए ज्यादा सीट छोड़नी होगी। इस पर भाजपा के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस कह रहे हैं कि भाजपा बड़ी पार्टी है इसलिए वह ज्यादा सीट पर लड़ेगी। मुश्किल यह है कि राज ठाकरे की मनसे को भी गठबंधन में शामिल किया गया है। अगर भाजपा डेढ़ सौ सीट पर लड़ती है तो इन तीनों पार्टियों और रामदास अठावले की पार्टी के लिए 138 सीटें बचेंगी। उसका बंटवारा किस तरह होगा यह बड़ा सिरदर्द है। 

By NI Political Desk

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