महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन यानी महायुति के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। महायुति की तीनों पार्टियों भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के बीच तनाव बढ़ा है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद तीनों पार्टियां नए सिरे से अपनी पोजिशनिंग में लगी हैं। सबसे खराब स्थिति एनसीपी नेता अजित पवार की है। उनको चुनाव आयोग और स्पीकर ने असली एनसीपी तो बना दिया है लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी चार में से सिर्फ एक सीट जीत पाई। उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार बारामती सीट पर सुप्रिया सुले से हार गईं। उसके बाद अजित पवार ने अपनी पत्नी को राज्यसभा भेज दिया। इसे लेकर भी कई सीनियर नेता नाराज हैं। इस बीच राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्र ‘द ऑर्गेनाइजर’ में भाजपा के विचारक रतन शारदा ने अजित पवार की पार्टी से अलायंस को लेकर सवाल उठा दिया। उसके बाद से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में अजित पवार से ज्यादा फायदे की उम्मीद नहीं है। इसलिए उनको गठबंधन से बाहर भी किया जा सकता है। भाजपा में कई लोग ऐसा मानते हैं कि वे अकेले लड़ेंगे तो शरद पवार का वोट काटेंगे।
असल में भाजपा के समर्थन से ही अजित पवार ने अलग पार्टी बनवाई थी। उसके बाद भाजपा ने उनको उप मुख्यमंत्री बनाया तो पार्टी को उम्मीद थी कि पश्चिमी महाराष्ट्र की 12 लोकसभा और करीब 70 विधानसभा सीटों में फायदा होगा। लेकिन भाजपा को वह फायदा नहीं मिला। पिछले दिनों मंगलवार को दिल्ली में भाजपा की महाराष्ट्र ईकाई की कोर कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें अजित पवार की उपयोगिता को लेकर चर्चा हुई। आधिकारिक रूप से पार्टी की ओर से कहा गया कि गठबंधन की तीनों पार्टियां साथ लड़ेंगी। लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा और अजित पवार के बीच खटपट शुरू हो गई है। भाजपा को लग रहा है कि अजित पवार को साथ लेकर राजनीति करने का उलटा असर हुआ है। शरद पवार ज्यादा मजबूत हो गए हैं क्योंकि उनके साथ सहानुभूति हो गई। इस बीच महाराष्ट्र के सबसे बड़े ओबीसी नेता छगन भुजबल ने पूरे देश में जाति गणना की मांग शुरू कर दी है। भाजपा के नेता कह रहे हैं कि अजित पवार की शह पर वे ऐसी बातें कर रहे हैं। सो, दोनों तरफ से पोजिशनिंग शुरू हो गई है। जो फैसला होना है वह जल्दी ही होगा।