महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री और एनसीपी से अलग हुए गुट के नेता अजित पवार दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर लौटे हैं इसके बावजूद वे काम पर नहीं लौटे हैं। तीन हफ्ते से ज्यादा समय से वे मंत्रालय नहीं जा रहे हैं। पहले कहा गया कि उनको डेंगू हो गया है। डेंगू की वजह से वे थोड़े दिन आराम करते रहे। ठीक होने के बाद भी वे आराम ही करते रहे। हालांकि उसी बीच वे दिल्ली आए और अमित शाह से मिले। लौटने के बाद बारामती के उनके फॉर्म हाउस पर भाईदूज का बड़ा आयोजन हुआ, जिसमें सुप्रिया सुले सहित शरद पवार और परिवार के तमाम सदस्य शामिल हुए। उसके बाद भी वे अपने मंत्रालय में बैठने नहीं जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि उनके मंत्रालय के साथ साथ उनकी पार्टी के तमाम मंत्रियों के मंत्रालय में कामकाज ठप्प पड़ा हुआ है। एक तरह से पूरी सरकार ठहरी हुई है। अधिकारी भी काम नहीं कर रहे हैं। वे हालात ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।
अब सवाल है कि अजित पवार क्या चाहते हैं? जब वे एनसीपी से अलग हुए तो उनको उप मुख्यमंत्री बनाया गया और उनकी पसंद का वित्त मंत्रालय दिया गया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उनको वित्त मंत्रालय दिए जाने के पक्ष में नहीं थे और इस वजह से कई दिन तक विभागों का बंटवारा अटका रहा। अंत में अजित पवार जीते। फिर पुणे का गार्जियन मंत्री का मामला अटका। शिंदे उनको पुणे का गार्जियन मंत्री नहीं बनाना चाहते थे। इस विवाद में भी अजित पवार जीते और पुणे के गार्जियन मंत्री बने। अब कहा जा रहा है कि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। मराठा आरक्षण आंदोलन के बाद उनकी मांग तेज हो गई है। हालांकि उनकी पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि वे अमित शाह से मंत्रिमंडल विस्तार के बारे में बात करने के लिए मिले थे। ध्यान रहे अगले महीने के आखिर तक एकनाथ शिंदे सहित शिव सेना के 15 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला होना है। उसे देखते हुए अजित पवार निर्णायक दांव खेलने की तैयारी में हैं।