ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र की सरकार यह काम पहले नहीं कर सकती थी। कई दिन पहले ही राज्यपाल के कोटे के मनोनीत विधान पार्षदों यानी एमएलसी के नाम तय हो सकते थे और उनकी शपथ भी हो सकती थी। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इंतजार किया कि जिस दिन चुनाव आयोग राज्य में मतदान की तारीख का ऐलान करेगा उस दिन एमएलसी तय होंगे और उसी दिन उनकी शपथ कराई जाएगी। महाराष्ट्र सरकार एक ही साथ सभी 12 सीटों पर एमएलसी के नाम भेज कर उन्हें शपथ करा सकती थी लेकिन उसने सिर्फ सात ही नाम भेजे और सात लोगों को मनोनीत किए जाने के बाद उनकी शपथ कराई। यह मामला हाई कोर्ट में लंबित है। उसके बावजूद सात लोगों को शपथ दिलाई गई। अब सवाल है कि भाजपा के समर्थन वाली एकनाथ शिंदे सरकार ने सिर्फ सात ही नाम क्यों भेजे और वह भी आखिरी दिन क्यों चुना? इसका जवाब कोई बाहरी आदमी नहीं दे सकता है।
आखिरी दिन शपथ कराने का तो यह संदेश हो सकता है कि भाजपा और उसकी सहयोगियों ने दिखाया हो कि उन्हें चुनाव आयोग के कार्यक्रम की जानकारी नहीं थी। उनको पता था कि जो तारीखें घोषित होंगी उन पर सवाल उठेंगे इसलिए यह तमाशा खड़ा किया गया। लेकिन सिर्फ सात ही क्यों, जबकि 12 पद खाली थे? ध्यान रहे ये पद 2020 से खाली थे। 2020 में तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने इसके लिए 12 नाम भेजे थे, जिसे तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी लटकाए रह गए थे।
यह राज्यपाल के कार्यालय के दुरुपयोग का क्लासिकल मामला है। बाद में जब एकनाथ शिंदे की सरकार बनी तो उसने ये सारे नाम वापस ले लिए। लेकिन उसने भी ढाई साल में फिर नाम नहीं भेजे। आखिरी दिन सात नाम भेजे, जिसमें तीन भाजपा के और दो दो एकनाथ शिंदे व अजित पवार की पार्टी के थे। बाकी पांच खाली जगहों को लेकर भाजपा ने क्या सोचा है? क्या उसको पता है कि अपनी सरकार बनाने के लिए नए सहयोगी की जरुरत पड़ेगी तो उसके इसमें से कुछ सीटें दे देंगे या अगर किसी दूसरे न गलती से सरकार बना भी ली तो राज्यपाल उसकी सिफारिशों को रोके रह जाएंगे?