महाराष्ट्र में मतदाताओं ने क्या विरासत का फैसला कर दिया? क्या बाला साहेब ठाकरे की विरासत के असली वारिस एकनाथ शिंदे हैं और शरद पवार ने जो राजनीति शुरू की थी उसके असली वारिस अजित पवार हैं? विधानसभा चुनाव के नतीजों से कम से कम अभी के लिए यह विवाद खत्म हो गया है कि असली शिव सेना कौन है और असली एनसीपी कौन है। महाराष्ट्र के मतदाताओं ने असली शिव सेना एकनाथ शिंदे की पार्टी को माना है और असली एनसीपी यानी मराठा राजनीति करने वाली पार्टी अजित पवार की है। यह उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों के लिए बहुत बड़ा झटका है। कांग्रेस को तो जो झटका लगा है वह अपनी जगह है। लेकिन कांग्रेस को ऐसे झटके खाने की आदत लग गई है। कुछ दिन पहले ही उसे हरियाणा और जम्मू कश्मीर में झटका लगा था। उसके नेता इसमें सांत्वना खोज सकते हैं कि झारखंड में ठीक प्रदर्शन हुआ और फिर सरकार में रहने का मौका मिल गया।
लेकिन उद्धव ठाकरे क्या करेंगे? सबसे बड़ा झटका उनके लिए है क्योंकि उनके हाथ से अपने पिता बाल ठाकरे की विरासत फिसल गई है। जो काम राज ठाकरे नहीं कर सके, वह काम एकनाथ शिंदे ने कर दिया। भारतीय राजनीति में आमतौर पर देखा गया है कि परिवार की विरासत परिवार में ही रहती है। आंध्र प्रदेश में भी एनटी रामाराव की विरासत उनके बेटों को नहीं मिली तो उनके दामाद के हाथ में गई। ऐसा शायद कहीं नहीं हुआ होगा कि परिवार की विरासत बाहर के किसी व्यक्ति के हाथ में चली जाए। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा होता दिख रहा है। लोकसभा चुनाव में भी एकनाथ शिंदे की पार्टी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और विधानसभा चुनाव में तो उसने निर्णायक रूप से उद्धव ठाकरे की पार्टी को हरा दिया। कांग्रेस के साथ जाने से उद्धव के बारे में यह मैसेज गया कि वे बाल ठाकरे के रास्ते से हट गए हैं और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। शिव सैनिकों में यह बात अपील कर गई कि वे ‘औरंगजेब फैन क्लब’ के मेंबर हो गए हैं। तभी सवाल है कि क्या अब वे कांग्रेस से अलग होकर पुरानी बाल ठाकरे वाली राजनीति करेंगे या जिस रास्ते पर चल रहे हैं उसी पर चलते रहेंगे?
शरद पवार के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल हुई है क्योंकि आखिरी चुनाव का भावनात्मक दांव भी कामयाब नहीं हुआ है। अजित पवार ने निर्णायक जीत हासिल की है। उनकी पार्टी ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया है और वे खुद भी बारामती सीट पर बहुत बड़े अंतर से चुनाव जीते हैं। हालांकि उनका भी मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा ही रह गया। इस बार फिर वे उप मुख्यमंत्री ही बन पाएंगे लेकिन यह तय हो गया कि मराठा राजनीति का चेहरा अजित पवार हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके बाद परिवार की एकजुटता बनती है या नहीं? अब परिवार की एकजुटता बनने का मतलब है कि शरद पवार का परिवार अजित पवार को नेता स्वीकार कर ले। सुप्रिया सुले, रोहित पवार, युगेंद्र पवार आदि सब उनके साथ जाएं। माना जा रहा है कि अभी तो यह नहीं होगा लेकिन अगले चुनाव से पहले अजित पवार मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के साथ भाजपा से अलग होते हैं तो उस समय परिवार साथ आ सकता है। लेकिन उससे पहले शरद पवार की विरासत अजित पवार को मिल गई दिख रही है।