एक पुरानी कहावत है, ‘दुकानदार उधार नहीं दे रहा है और आप कह रहे हो कम मत तौलना’, यह कहावत एनसीपी के नेता अजित पवार के ऊपर लागू होती है। भाजपा उनको अभी अपने गठबंधन में रखेगी या नहीं यह तय नहीं है। लेकिन वे कह रहे हैं कि सीटें कम नहीं लेंगे। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनको चार सीटें दी थीं, जिनमें से वे एक सीट पर जीते। परंतु उनकी पार्टी कह रही है कि विधानसभा चुनाव में उनको 60 सीटें चाहिएं। लोकसभा सीटों के हिसाब से अगर विधानसभा सीटों की गिनती करें तो उनका दावा सिर्फ 24 सीटों पर बनता है। लेकिन प्रादेशिक पार्टी होने की वजह से वे ज्यादा सीट की मांग कर रहे हैं।
दूसरी ओर भाजपा के नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला है। संघ के विचारक रतन शारदा की ओर से लेख लिख कर भाजपा व एनसीपी गठबंधन पर सवाल उठाए जाने के बाद से ही अजित पवार की पार्टी निशाने पर है। अब तो भाजपा के एक प्रदेश प्रवक्ता ने यहां तक कह दिया है कि एनसीपी को खुद ही भाजपा गठबंधन से अलग हो जाना चाहिए। इस पर अजित पवार ने कहा कि वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह से बात करते हैं। लेकिन सवाल है कि भाजपा के या एकनाथ शिंदे की शिव सेना के जो नेता अजित पवार को दुत्कार रहे हैं उनके खिलाफ मोदी और शाह तो कोई कार्रवाई कर नहीं रहे हैं। इसका मतलब है कि पार्टी में भी एनसीपी को लेकर बहुत भरोसा या उम्मीद नहीं है। इसके बावजूद अजित पवार की पार्टी 60 सीट मांग रही है। क्या यह गठबंधन से अलग होने का दांव है?