महाराष्ट्र की राजनीति में क्या उद्धव ठाकरे कमजोर कड़ी साबित होंगे? उन्होंने पूरा जोर लगाया है कि कांग्रेस और शरद पवार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का दावेदार पेश करें। उनको लग रहा है कि इन दोनों पार्टियों के पास कोई अखिल महाराष्ट्र की राजनीति करने वाला नेता नहीं है और न कोई ऐसा चेहरा है, जो करिश्माई हो। तभी उनको भरोसा है कि अगर चुनाव से पहले सीएम का दावेदार घोषित हुआ तो वे इकलौते नेता हैं, जो हर कसौटी पर खरा उतरते हैं। उनको यह भी पता है कि तमाम सद्भाव के बावजूद उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन कर नहीं उभरने वाली है।
आखिर लोकसभा में 21 सीट लड़ कर उनकी शिव सेना सिर्फ नौ सीट जीत पाई, जबकि कांग्रेस 17 सीट पर लड़ कर 13 और शरद पवार की एनसीपी 10 सीट लड़ कर आठ सीटों पर जीती। लोकसभा चुनाव में सबसे खराब स्ट्राइक रेट भाजपा का, फिर उद्धव ठाकरे का और फिर अजित पवार का रहा।
तभी उद्धव ने यह साफ कर दिया है कि वे सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी के ही नेता के मुख्यमंत्री बनने के फॉर्मूले को नहीं मानते। सीएम चेहरे का ऐलान और सबसे बड़ी पार्टी के नेता के सीएम बनने के फॉर्मूले के विरोध का यह संकेत है कि वे हर हाल में मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने साफ कर दिया है कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का फैसला नहीं होगा। उनकी अपनी महत्वाकांक्षा है लेकिन कांग्रेस मान रही है कि वह गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होगी और फिर उसका मुख्यमंत्री बनेगा। तब क्या उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य को उप मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहेंगे? यह संभव नहीं लगता है। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि भाजपा को हर हाल में महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनानी है। इसके लिए उसे उद्धव को साथ लाना हो या शरद पवार से बात करनी हो, वह करेगी। आखिर 2014 में शरद पवार ने ही बाहर से समर्थन देकर भाजपा की सरकार बनवाई थी। इस बार जरुरत पड़ने पर वह उद्धव ठाकरे को कुछ भी ऑफर कर सकती है। अगर कांग्रेस वैसा ऑफर नहीं करती है तो महाराष्ट्र खेला हो सकता है।