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महाराष्ट्र में सस्पेंस खत्म नहीं हो रहा

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है और साथ ही नतीजों और नतीजों के बाद की राजनीति का सस्पेंस बढ़ता जा रहा है। पिछले 30 साल की तरह इस बार भी महाराष्ट्र की कोई भी पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी। त्रिशंकु विधानसभा या गठबंधन सरकार का जो प्रयोग 1995 में भाजपा और शिव सेना की सरकार के साथ शुरू हुआ था वह आगे भी जारी रहने वाला है। सबसे ज्यादा 152 सीटों पर चुनाव लड़ रही भाजपा ने भी मान लिया है कि वह अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है लेकिन वह सबसे बड़ी पार्टी होगी। सबको पता है कि सबसे बड़ी पार्टी होना सरकार बनाने की गारंटी नहीं है। पिछली बार यानी 2019 में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को उससे आधी सीटें मिली थीं। फिर भी भाजपा सरकार नहीं बना पाई।

महाराष्ट्र में चूंकि छह बड़ी पार्टियों के दो गठबंधन आमने सामने चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए नतीजों का सस्पेंस है। अगर लोकसभा चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो 25 सीटों पर लड़ कर भाजपा सिर्फ नौ सीट जीत पाई थी, जबकि सिर्फ 17 सीटों पर लड़ कर कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटें जीतीं। तभी पहला सस्पेंस तो यह है कि 152 सीट लड़ कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होगी या 104 सीट लड़ कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनेगी? लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी शिव सेना का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा था। वह महाविकास अघाड़ी में सबसे ज्यादा 21 सीटों पर लड़ी थी लेकिन नौ ही सीट जीत पाई। इस बार भी वह सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ने के लिए अड़ी रही लेकिन अंत में वह कांग्रेस से पीछे रह गई। वह 94 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में यह मैसेज था कि उद्धव ठाकरे दिल्ली की राजनीति में नहीं जाने वाले हैं। इसलिए उनको कुछ वोट कम मिले और शिव सैनिकों के कुछ वोट एकनाथ शिंदे के खाते में भी गए। लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा। इसका मतलब है कि विधानसभा चुनाव में उद्धव की पार्टी का प्रदर्शन सुधर सकता है।

लोकसभा चुनाव में शरद पवार का स्ट्राइक रेट सबसे बढ़िया था। उनकी पार्टी 10 सीटों पर लड़ी थी और आठ पर जीती। इस बार उनकी पार्टी 87 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और राज्य की राजनीति के जानकार लोकसभा जैसा प्रदर्शन ही दोहराने की संभावना जता रहे हैं। अगर शरद पवार की पार्टी लोकसभा जैसा प्रदर्शन दोहराती है तो यह तय मानना चाहिए उनके भतीजे और चुनाव आयोग की ओर से मान्यता प्राप्त असली एनसीपी के प्रमुख अजित पवार को बड़ा झटका लगेगा। लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भी वे साफ हो सकते हैं। अजित पवार की तरह दूसरे नए खिलाड़ी एकनाथ शिंदे हैं। हालांकि ये दोनों लंबे समय से महाराष्ट्र की राजनीति में हैं फिर नए खिलाड़ी इसलिए माने जा रहे हैं क्योंकि पहली बार अपनी पार्टी बना कर लड़ रहे हैं। शिंदे की शिव सेना को लोकसभा चुनाव में शिव सैनिकों का समर्थन मिला था तभी उनकी पार्टी सात सीटों पर जीती थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में उस तरह का समर्थन मिलेगा, इसमें संदेह है। बहरहाल, कम या ज्यादा महाराष्ट्र की 288 सीटें इन छह पार्टियों में बंटेंगी और कोई भी पार्टी बहुमत के आसपास भी नहीं पहुंचने वाली है। असली सस्पेंस इस बात का है कि पार्टियों का क्रम क्या होगा? पहले, दूसरे और तीसरे नंबर की पार्टी कौन होगा?

By NI Political Desk

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