भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी की प्रमुख माधवी पुरी बुच संसद की लोक लेखा समिति यानी पीएसी की बैठक में आने को तैयार थीं या कम से कम उन्होंने यह दिखाया था कि वे आना चाहती हैं। तभी पीएसी के चेयरमैन केसी वेणुगोपाल की ओर सी भेजी गई चिट्ठी के जवाब में सेबी की ओर से कहा गया था सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच सहित सेबी के चार अधिकारी पीएसी की बैठक में हिस्सा लेंगे। बैठक के लिए 24 अक्टूबर की तारीख तय थी। सारे सदस्यों को इसकी सूचना दे दी गई थी। सुबह करीब 11 बजे बैठक शुरू होने वाली थी। लेकिन उससे दो घंटे पहले सेबी प्रमुख की ओर से पीएसी को सूचित किया गया है कि ‘पर्सनल इमरजेंसी’ की वजह से वे पीएसी की बैठक में नहीं शामिल हो पाएंगी। इसके बाद लोक लेखा समिति की बैठक टाल दी गई।
कायदे से यह संसद और समिति की अवमानना का मामला है लेकिन केसी वेणुगोपाल की ओर से कहा गया कि माधवी पुरी बुच महिला हैं और उन्होंने ‘पर्सनल इमरजेंसी’ की बात कही है तो उनको मौका दिया जाएगा। गौरतलब है कि जब वेणुगोपाल की ओर से चार अक्टूबर को सेबी प्रमुख को चिट्ठी भेजी गई थी तब पीएसी में शामिल भाजपा के सांसदों ने इसका विरोध किया था। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इसे लेकर लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने इसे पीएसी के नियमों का उल्लंघन बताया था और कहा था कि पीएसी के अध्यक्ष अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने पीएसी के अध्यक्ष को अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले टूलकिट का हिस्सा बताया था। सोचें, मुख्य विपक्षी पार्टी के संगठन महासचिव, लोकसभा सदस्य और पीएसी के अध्यक्ष पर यह कितना गंभीर आरोप था।
इसके बावजूद स्पीकर ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। चार अक्टूबर को लिखी गई चिट्टी की शिकायत पर 24 अक्टूबर तक स्पीकर की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। तभी सेबी प्रमुख भी पीएसी की बैठक में आने को तैयार थीं। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि 24 अक्टूबर की सुबह माधवी पुरी ने बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया? इतना ही नहीं इसके बाद पूरी भारतीय जनता पार्टी उनके समर्थन में उतर गई। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केसी वेणुगोपाल को निशाना बनाया।
गौरतलब है कि सेबी प्रमुख के ऊपर हितों के टकराव और आर्थिक कदाचार के आरोप लगे हैं। आरोप हैं कि सेबी हिंडनबर्ग रिसर्च की ओर से अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों की जांच कर रही थी और सेबी प्रमुख ने उस कंपनी में निवेश किया था, जिसका निवेश अडानी समूह में भी है। इसी तरह उन पर यह भी आरोप लगा है कि वे सेबी प्रमुख के पद पर रहते हुए आईसीआईसीआई बैंक और कुछ अन्य जगहों से पैसे लेती रहीं। हालांकि पीएसी ने उनके इन आरोपों की जांच के लिए नहीं बुलाया था। उनको सेबी के कामकाज की समीक्षा के लिए बुलाया गया था। भाजपा के सांसद इस तकनीकी नुक्ते को आधार बना कर उनको बुलाए जाने का विरोध कर रहे हैं कि पीएसी को सिर्फ वही मामले देखने चाहिए, जो सीएजी ने भेजे हैं। कहने का मतलब है कि अगर सीएजी ने सेबी के कामकाज पर कोई सवाल नहीं उठाया है या उसकी कोई रिपोर्ट नहीं है तो पीएसी को अपनी तरफ से पहल करके किसी को नहीं बुलाना चाहिए।