यह बड़ा सवाल है क्योंकि एक तरफ चुनाव चल रहे हैं और दूसरी ओर सभी वीवीपैट मशीनों की पर्चियों की गिनती का मामला भी अदालत में सुना जा रहा है। गौरतलब है कि विपक्षी पार्टियों ने वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट मशीन की पर्चियों को गिनने और ईवीएम के वोट से उनके मिलान की मांग कर रही हैं। इसके लिए कई बार विपक्षी पार्टियों ने प्रदर्शन किया है।
इससे पहले 2019 के अप्रैल में ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र के पांच बूथों पर वीवीपैट मशीन की पर्चियों की गिनती की जाए और उसका मिलान ईवीएम के वोट से किया जाए जाए। ध्यान रहे उससे पहले एक विधानसभा में कोई एक बूथ रैंडम तरीके से चुन कर उसकी वीवीपैट मशीन की पर्ची गिनने का प्रावधान था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे बढ़ा कर पांच कर दिया।
अब विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि सभी वीवीपैट मशीनों की पर्चियां गिनी जाएं। अगर ऐसा होता है तो यह बैलेट पेपर से ही चुनाव कराने जैसा हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई की बेंच ने इस पर सुनवाई की है और चुनाव आयोग के साथ साथ केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग इस आइडिया का विरोध करता है।
उसकी ओर से कहा जाता है कि अगर सभी वीवीपैट मशीन की पर्चियों की गिनती होगी तो नतीजे आने में कई दिन लग जाएंगे। पहले जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे तो सारे नतीजे आने में तीन चार दिन का समय लगता था। इसमें भी वैसा हो सकता है। लेकिन लोकतंत्र और चुनाव की निष्पक्षता, स्वतंत्रता और पारदर्शिता के लिए अगर यह जरूरी है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वैसे भी चुनाव की प्रक्रिया तो 81 दिन में पूरी होनी है। आयोग ने 16 मार्च को चुनाव की घोषणा की थी, जिस दिन आचार संहिता लगी और वोटों की गिनती चार जून को होगी। ऐसे में अगर नतीजे आने में दो या चार दिन और लग जाते हैं तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
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