भाजपा गठबंधन और विपक्षी पार्टियों के गठबंधन की 18 जुलाई को क्रमशः दिल्ली और बेंगलुरू में हो रही बैठक में सबसे ज्यादा इस बात पर नजर रहेगी कि क्या दोनों गठबंधन अपने संयोजक का चुनाव करेंगे? ध्यान रहे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में संयोजक का पद रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते जनता दल यू और टीडीपी के नेता संयोजक रहे हैं। लेकिन पिछले नौ साल से एक तरह से एनडीए का अस्तित्व औपचारिकता के लिए था। भाजपा दो बार से पूर्ण बहुमत की सरकार बना रही थी। लेकिन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने फिर से एनडीए को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया है। तभी इस बात पर नजर रहेगी कि क्या किसी सहयोगी पार्टी के नेता को एनडीए का संयोजक बनाया जाएगा?
दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन की बैठक में यह तय नही है कि गठबंधन का नाम यूपीए रहेगा या कुछ और होगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को छोड़ चुकी कई पार्टियां विपक्षी गठबंधन की बैठक में शामिल होंगी। कई पार्टियां ऐसी भी हैं, जो कभी यूपीए का हिस्सा नहीं रही हैं, जैसे कम्युनिस्ट पार्टियां। सो, वहां सबसे पहले यह तय होना है कि गठबंधन का नाम क्या होगा? यूपीए या पीडीए? पीडीए का अनौपचारिक सुझाव कुछ पार्टियों ने दिया है। इसका मतलब है प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक एलायंस यानी प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा। वैसे अखिलेश यादव के हिसाब से इसका मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक है। जो हो विपक्षी नेता पहले गठबंधन तय करेंगे और उसके बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि सभी पार्टियां मिल कर कोई संयोजक या समन्वयक तय कर पाती हैं या नहीं। पटना की बैठक में ऐसा लग रहा था कि जदयू के नेता नीतीश कुमार संयोजक चुने जाएंगे लेकिन वह फैसला नहीं हो पाया था।