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लोकपाल की ऐसी दुर्दशा!

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आधुनिक भारत में जो जन आंदोलन हुए हैं उनमें एक सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन लोकपाल की स्थापना के लिए था। अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली में विशाल आंदोलन हुआ था, जो कई दिन चलता रहा था। लाखों लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस आंदोलन से जुड़े थे। ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नाम से हुए इस आंदोलन ने पूरे देश की राजनीति को बदल दिया था। मजबूर होकर उस समय की मनमोहन सिंह सरकार को लोकपाल का बिल पास पड़ा था। उस लोकपाल आंदोलन की लहर पर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। लेकिन जाती हुई मनमोहन सिंह सरकार ने जो कानून पास किया था उसके हिसाब से लोकपाल का गठन करने में नरेंद्र मोदी सरकार को पांच साल लगे।

पांच साल में इस लोकपाल ने एक भी व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी नहीं ठहराया है। एक संसदीय समिति ने लोकपाल के प्रदर्शन को अपेक्षा से बहुत खराब माना है। पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकपाल को 2,760 शिकायतें मिली थीं, जिनमें से 2,518 शिकायतें तो लोकपाल ने सिर्फ इस आधार पर खारिज कर दी थी कि ये निर्धारित फॉर्मेट में नहीं थीं। बची हुई 242 शिकायतों पर कोई खास कार्रवाई नहीं हुई है। सोचें, जिस लोकपाल से देश में भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो जाने और प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और सरकारी अधिकारियों से लेकर सरकारी अनुदान से काम करने वाली संस्थाओं तक में संपूर्ण पारदर्शिता बहाल हो जाने की उम्मीद थी उसने पांच साल में भ्रष्टाचार के एक भी मामले में किसी को दोषी नहीं पाया है।

लोकपाल का यह रिकॉर्ड तो अपनी जगह है लेकिन उससे भी हैरान करने वाला मामला अभी सामने आया है, जब लोकपाल ने सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच के खिलाफ दायर की गई शिकायतों पर कार्रवाई से इनकार करते हुए माधवी बुच के वकील की तरह खूब सारी दलीलें दीं। लोकपाल ने उलटे शिकायतकर्ताओं पर सवाल उठाए। उसने कहा कि लोग इंटरनेट से रिपोर्ट डाउनलोड करके शिकायत करने पहुंच जाते हैं। लोकपाल ने शिकायत करने वालों से यहां तक कहा कि वे दिखाएं कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता की जांच करने के लिए क्या प्रयास किए? सवाल है कि आम आदमी भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते सबूत पेश करेगा तब लोकपाल उस पर कार्रवाई करेगा या लोकपाल को पहली नजर में भ्रष्टाचार के आरोपों में दम दिखता है तो वह एजेंसियों से जांच कराएगा?

भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कुछ दस्तावेजों के साथ शिकायत की तो लोकपाल ने सीबीआई को उसकी प्रारंभिक जांच के लिए कहा। लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उसके बाद आए दूसरे तथ्यों के आधार पर माधवी बुच की शिकायत की तो लोकपाल ने पूछा कि आपने क्या प्रयास किया है यानी आपने क्या जांच की है? माधवी बुच के खिलाफ सिर्फ हिंडनबर्ग की शिकायत नहीं है, बल्कि दूसरे कई और स्रोत से गड़बड़ी की खबरें आई हैं। लोकपाल ने उनके वकील की तरह उनका बचाव किया। यहां तक कहा कि सरकारी सेवा में आने से पहले अगर निवेश से कमाई हुई है तो यह कैसे गलत है। हकीकत यह है कि माधवी बुच पर सेबी में सदस्य या उसका प्रमुख रहते हुए दूसरे स्रोत से कमाई के आरोप लगे हैं।

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