भारतीय राजनीति का एक सनातन विषय भाजपा और आरएसएस के संबंध भी है। इनके बीच सद्भाव या तनाव की खबरें लगातार चलती रहती हैं और लगातार इसका विश्लेषण भी होता रहता है। इस बार भी लोकसभा चुनाव के दौरान इस बात की चर्चा होती रही कि आरएसएस नाराज है और उसके लोग भाजपा की मदद नहीं कर रहे हैं। चुनाव के बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कह दिया कि भाजपा को पहले आरएसएस की मदद की जरुरत थी लेकिन अब वह आत्मनिर्भर है। इन तमाम चर्चाओं के बीच संघ की तरफ से चुनाव के दौरान कुछ नहीं कहा गया लेकिन अब आरएसएस ने भाजपा को आईना दिखाया है और यह काम खुद आगे बढ़ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया है।
उन्होंने बिना किसी का नाम लिए वह सारी बातें कही हैं, जो भाजपा और नरेंद्र मोदी को लेकर विपक्षी पार्टियां कह रही थीं। भागवत ने नागपुर में संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा- जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किन्तु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों मे सेवक कहलाने का अधिकारी है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने को सेवक कहते रहे हैं। विपक्ष के ऊपर झूठे आरोपों और बेहिसाब हमलों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि जब चुनाव होता है तो मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए। भागवत ने मणिपुर का मामला भी उठाया और कहा- मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। बीते 10 साल से राज्य में शांति थी, लेकिन अचानक से वहां गन कल्चर बढ़ गया। जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए।
संघ की ओर से भाजपा को आईना दिखाने का काम बड़े सुनियोजित तरीके से हुआ है। संघ की पत्रिका ‘द ऑर्गेनाइजर’ में एक पुराने विचारक रतन शारदा का लेख छपा है, जिसमें उन्होंने कहा कि संघ भाजपा का ‘फील्ड फोर्स’ नहीं है। अब तक यही माना जाता था कि चुनाव में जमीनी स्तर पर भाजपा को संघ के स्वंयसेवकों की मदद मिलती है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इस लेख के जरिए भाजपा ने नड्डा की बात का जवाब दिया है। संघ और भाजपा का एक और विवाद पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है, जहां संघ से जुड़े शांतनु सिन्हा ने भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय पर महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगाया है। मालवीय ने उनको 10 करोड़ रुपए की मानहानि का नोटिस भी भेजा है।