इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की 63 सीटें कम हो गईं। वह बहुमत से 32 सीट पीछे रह गई है लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इसका कोई असर नहीं है। शुरुआत के दो चार दिनों को छोड़ दें, जब वे बैकफुट पर दिखे और सहयोगी पार्टियों के साथ संबंध सुधार की कोशिश करते दिखाई दे, तो अब उनकी पुरानी राजनीति लौट आई दिख रही है। उन्होंने सहयोगी पार्टियों की स्थिति पहले जैसी ही कर दी है, जैसी भाजपा के पूर्ण बहुमत के समय होती थी। सहयोगियों को न तो उनकी संख्या के हिसाब से मंत्री पद मिले हैं और न अपनी ताकत के हिसाब से उनको मंत्रालय मिला है। उन्हें जो मिला है वह प्रधानमंत्री की कृपा से मिला दिख रहा है।
पिछली दो सरकारों में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘टके सेर भाजी, टके सेर खाजा’ का एक फॉर्मूला बनाया था, जिसके मुताबिक किसी सहयोगी पार्टी के चाहे कितने भी सांसद हों उसे एक मंत्री पद मिला था। 2019 में नीतीश कुमार ने यह फॉर्मूला ठुकरा दिया था और दिल्ली से लौट गए थे। हालांकि उनके तब के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने सरकार का फॉर्मूला स्वीकार कर लिया और अकेले मंत्री बन गए। इसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ा। उनका राजनीतिक करियर ही लगभग समाप्त हो गया है। इसी तरह का विवाद शिव सेना को लेकर भी हुआ था। बाद में तो शिव सेना भाजपा से अलग ही हो गई।
इस बार ऐसा लग रहा था कि भाजपा कमजोर हुई है और उसकी सीटें कम हुई हैं तो वह पुराना फॉर्मूला बदलेगी। लेकिन उसमें कोई खास बदलाव हुआ नहीं दिख रहा है। नरेंद्र मोदी ने दो बड़ी सहयोगी पार्टियों के मंत्रियों की संख्या एक से बढ़ा कर दो कर दी है। 2014 से पहले जब गठबंधन सरकारों का दौर था तब तीन या चार सांसद पर एक मंत्री बनाने का फॉर्मूला चलता था। इसी आधार पर जनता दल यू को तीन और तेलुगू देशम पार्टी को चार मंत्री पद मिलने की बात हो रही थी। लेकिन ऐसा कोई फॉर्मूला मोदी ने नहीं बनाया। उन्होंने जदयू और टीडीपी दोनों को एक-एक कैबिनेट और एक-एक राज्यमंत्री का पद दे दिया। सात सांसद वाली शिवसेना को सिर्फ एक स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री पद दिया। कुछ अन्य सहयोगी पार्टियों को एक-एक राज्यमंत्री का पद मिला और कई सहयोगियों को बिना मंत्री पद दिए ही छोड़ दिया।
इसी तरह विभागों के बंटवारे की बात आई तो सारे अहम विभाग मोदी ने भाजपा के खाते में डाल दिए। शीर्ष चार मंत्रालयों में किसी को कुछ मिलने की आस पहले से नहीं थी लेकिन कहा जा रहा था कि कुछ अन्य मंत्रालय, जो पारंपरिक रूप से सहयोगी पार्टियों को मिलते रहे हैं वह जनता दल यू, टीडीपी और शिव सेना को मिलेंगे। चिराग पासवान की पार्टी को भी अहम मंत्रालय मिलने की संभावना थी। लेकिन मोदी ने रक्षा, गृह, वित्त और विदेश सहित दूसरे तमाम मंत्रालय भाजपा के नेताओं को दे दिए। तभी सहयोगी पार्टियों में नाराजगी बढ़ने की खबर है। मंत्रियों की संख्या कम होने पर भी जो चुप रहे थे, मंत्रालय के बंटवारे के बाद वे भी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।