लोकसभा चुनाव सात चरणों में और करीब ढाई महीने में कराने के चुनाव आयोग के फैसले का कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने जम कर विरोध किया था। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस इसका फायदा उठा रही है। वह धीरे धीरे फेज के हिसाब से उम्मीदवारों की घोषणा कर रही है। वह भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के उन नेताओं का इंतजार कर रही है, जिनको इस बार टिकट नहीं मिली है।
यही कारण है कि पहले दो चरण का नामांकन समाप्त हो जाने और तीसरे चरण का नामांकन शुरू हो जाने के बावजूद कांग्रेस ने सिर्फ 231 उम्मीदवारों की घोषणा की है, जबकि भाजपा चार सौ से ज्यादा उम्मीदवार घोषित कर चुकी। कई क्षेत्रीय पार्टियों के सभी उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है।
बहरहाल, सवाल है कि कांग्रेस इस बार कितनी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी? पिछली बार वह 421 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 52 पर जीत मिली थी। उससे पहले यानी 2014 में कांग्रेस 464 सीटों पर लड़ी थी और 44 सीटों पर जीती थी। तब केंद्र में उसकी 10 साल की सरकार थी और उसका गठबंधन लगभग बिखरा हुआ था।
इस तरह दो चुनावों में कांग्रेस लोकसभा की सीटों की कुल संख्या के 10 फीसदी के बराबर सीट नहीं हासिल कर पाई थी, जिससे उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं मिल पाया। बताया जा रहा है कि इस बार कांग्रेस 2019 से भी बहुत कम सीटों पर लड़ने जा रही है। 2019 में वह 421 सीटों पर लड़ी थी और इस बार वह सिर्फ 320 से साढ़े तीन सौ सीटों पर लड़ सकती है।
सोचें, कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और एक समय वह लगातार तीन सौ से ज्यादा सीटें जीतती थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि वह 320 से साढ़े तीन सौ सीटों पर ही लड़ेगी। इतनी कम सीटों पर कांग्रेस कभी भी नहीं लड़ी है।
असल में कांग्रेस की ये सीटें इसलिए कम हो रही है क्योंकि इस बार महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उसके सहयोगी बढ़ गए हैं और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के रूप में उसे नया सहयोगी मिल गया है। वह बाकी राज्यों में पहले जितनी सीटों पर ही लड़ रही है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि राज्यों की वजह से उसकी सीटें कम हो रही हैं।
गौरतलब है कि पिछली बार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 67 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन इस बार वह सिर्फ 17 सीटों पर लड़ रही है। इस तरह 50 सीटें तो अकेले उत्तर प्रदेश में कम हो गई हैं। इसी तरह महाराष्ट्र में इस बार शिव सेना का उद्धव ठाकरे गुट भी गठबंधन में आ गया है, जिसकी वजह से सीटें तीन पार्टियों में बंटी है। कांग्रेस वहां सात या आठ सीट कम लड़ेगी।
दिल्ली में कांग्रेस ने चार सीटें आम आदमी पार्टी को दी है। इसके अलावा कांग्रेस ने हरियाणा और गुजरात में भी आम आदमी पार्टी के लिए सीटें छोड़ी हैं। कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के गठन के समय जो सिद्धांत तय हुआ था कि भाजपा के सामने हर सीट पर विपक्ष का एक उम्मीदवार होगा उसके लिए कांग्रेस ने कुर्बानी दी है और अपनी लड़ी हुई सीटें सहयोगी पार्टियों को दी हैं।