लोकसभा चुनाव के पांच चरण हो गए और आखिरी दो चरण में 114 सीटों पर मतदान होना है। लेकिन पहले चरण से शुरू हुआ आरक्षण का विवाद अभी तक थमा नहीं है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा की फिर से सरकार बनी तो वह आरक्षण समाप्त कर देगी। भाजपा के नेता अब चार सौ पार का नारा नहीं दे रहे हैं तो उसके पीछे कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों का बनाया यही नैरेटिव है कि भाजपा चार सौ से ज्यादा सीट इसलिए मांग रही है ताकि संविधान को और आरक्षण को खत्म कर सके।
इसके जवाब में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाली है और यह धारणा बनवा रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वह एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देगी। वे कभी राहुल गांधी के किसी पुराने बयान का हवाला देते हैं तो कभी लालू प्रसाद के बयान का हवाला देते हैं लेकिन किसी न किसी बहाने वे यह दावा कर रहे हैं कि विपक्ष धर्म के आधार पर आरक्षण देगा, जो कि वे अपने जीते जी संभव नहीं होने देंगे।
इसी बहस में पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कह दिया कि आरक्षण का आधार गरीबी रहेगी और धर्म कभी आरक्षण का आधार नहीं हो सकता है। अब इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है। उन्होंने यह बात जान बूझकर कही या अनजाने में यह बात उनके मुंह से निकल गई? ध्यान रहे भारत में एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण का आधार गरीबी नहीं है। उनको सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया गया है।
गरीबी को आधार बना कर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दिया है। तभी राजनाथ सिंह के बयान के बाद विपक्ष और सोशल मीडिया में आरक्षण समर्थक सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि क्या भाजपा सभी जातियों के लिए आर्थिक आधार पर यानी गरीबी के आधार पर आरक्षण देने की योजना पर काम कर रही है? इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है।
ध्यान रहे 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा का बयान दिया था और उसके बाद भाजपा ने चुनाव गंवा दिया था। बिहार में सभी पिछड़ी जातियां राजद और जनता दल यू के साथ हो गईं थी, जिसका नतीजा यह हुआ है कि एक साल पहले 2014 में लोकसभा की 32 सीट जीतने वाला एनडीए विधानसभा में कुल 59 सीट जीत सका। अब भी अगले दो चरण का चुनाव ऐसे इलाके में है, जहां आरक्षण का मुद्दा बहुत संवेदनशील होता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में 40 के करीब लोकसभा सीटों पर अगले दो चरण में मतदान होना है। उससे पहले अगर आरक्षण का विवाद तूल पकड़ता है तो भाजपा के लिए उसे संभालना मुश्किल होगा। चूंकि अभी राममंदिर या हिंदुत्व का कोई भी मुद्दा बहुत बड़ी लहर नहीं पैदा कर सका है इसलिए जातियों का मुद्दा उठा तो भाजपा को उससे नुकसान हो सकता है।