कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेता जान देकर पिछड़ी, अनुसूचित जाति और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा करते हैं। कांग्रेस पार्टी तो इन दिनों पिछड़े और वंचितों की सबसे चैंपियन पार्टी बनी है। राहुल गांधी जहां भी प्रचार करने जा रहे हैं वहां पिछड़ी जातियों की आबादी बता रहे हैं। वे बताते हैं कि देश के 90 सचिवों में से सिर्फ तीन पिछड़ी जाति के हैं। एक दिन तो उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से हाथ उठाने को कहा था कि उनमें से से कितने पिछड़ी जाति के हैं। जाति गणना कराने और जाति के अनुपात में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वादा कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में किया है। लेकिन जब टिकट देने की बारी आई तो बाजी मार गईं सामान्य जातियां।
कांग्रेस पार्टी ने अभी तक 294 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किया है। ज्यादा से ज्यादा 10 और सीटों पर उसके उम्मीदवार घोषित होने वाले हैं। अभी तक घोषित 294 उम्मीदवारों में 106 यानी 36 फीसदी उम्मीदवार सामान्य जाति यानी अगड़ी जातियों के हैं। राहुल गांधी जिनके चैंपियन बने हैं यानी पिछड़ी जातियों के 73 यानी कुल 25 फीसदी उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के 47 और अनुसूचित जनजाति के 41 उम्मीदवार दिए हैं और कहने की जरुरत नहीं है कि ये सभी अपने लिए आरक्षित सीटों पर लड़ रहे हैं। इसकी कोई सूचना नहीं है कि कांग्रेस ने किसी दलित या आदिवासी को सामान्य सीट से उम्मीदवार बनाया है। अल्पसंख्यक 27 यानी 10 फीसदी हैं, जिनमें मुस्लिम, ईसाई और सिख सब शामिल हैं। सोचें, एक सामान्य अनुमान के मुताबिक ओबीसी आबादी 50 फीसदी से ऊपर है लेकिन पार्टी के टिकट में उसका हिस्सा 25 फीसदी है। महिलाओं का अनुपात तो इससे बहुत खराब है और एससी, एसटी सिर्फ आरक्षित सीटों पर लड़ रहे हैं। लेकिन प्रचार में दावा 85 फीसदी आरक्षण देना का हो रहा है!
भाजपा की स्थिति इससे भी खराब है। उसने अब तक 432 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें 186 यानी 43 फीसदी सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस की ही तरह भाजपा ने भी पिछड़ी जातियों को 27फीसदी सीटें दी हैं। मंडल आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में इतना ही आरक्षण मिलता है। सो, कांग्रेस ने 25 फीसदी और भाजपा ने 27 फीसदी टिकट पिछड़ी जातियों को दी। बिहार में जहां पिछले दिनों जाति गणना हुई और पता चला कि हिंदू सवर्ण सिर्फ 10 फीसदी हैं वहां भाजपा ने अपने कोटे की 17 सीटों में से 10 सवर्ण दिए हैं यानी 60 फीसदी टिकटें सवर्णों को दी है। भाजपा इस भरोसे में है कि उसके टिकट देने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उसकी लीडरशिप पिछड़ी जाति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में प्रचार के दम पर अपनी पिछड़ी जाति की पहचान को स्थापित कर दिया है इसलिए पिछड़ी जातियां भाजपा को वोट देंगी। लेकिन कांग्रेस ने पता नहीं क्यों आबादी के अनुपात में पिछड़ी जातियों को टिकट नहीं दी?