कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री मनीष तिवारी पंजाब में तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं और इस बार भी वे नई सीट से लड़ेंगे। वे पहली बार 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़े थे और तब उनकी सीट लुधियाना थी। वे केंद्र में सूचना व प्रसारण मंत्री भी बने। 2014 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।
बताया जाता है कि खराब सेहत की वजह से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था। हालांकि यह भी हो सकता है कि उनको नतीजों का अंदाजा हो गया हो। आखिर उन्होंने ही अन्ना हजारे पर सबसे अपमानजनक टिप्पणी की थी। बहरहाल, वे दूसरी बार 2019 में चुनाव लड़े तो उनकी सीट आनंदपुर साहिब थी। अब 2024 में वे चंडीगढ़ सीट से चुनाव लड़ेंगे।
सवाल है कि ऐसा क्या होता कि पांच साल तक एक सीट से सांसद रहने के बाद वे सीट बदल देते हैं? क्या वे पांच साल तक काम नहीं करते हैं, जिसकी वजह से सीट छोड़ना पड़ता है या पार्टी उनको हर बार अलग सीट से लड़ाती है ताकि वे मुश्किल सीट जीत कर कांग्रेस को दे सकें? दोनों तरह के तर्क दिए जा रहे हैं।
इस बीच यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस छोड़ कर गए रवनीत सिंह बिट्टू के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध हैं और बिट्टू को भाजपा ने आनंदपुर साहिब सीट से उम्मीदवार बनाया है। बताया जा रहा है कि बिट्टू ने तिवारी से अनुरोध किया था कि वे आनंदपुर साहिब सीट नहीं लड़ें। उन्होंने उनको लुधियाना सीट से लड़ने की सलाह दी थी। पता नहीं बिट्टू की मदद के लिए तिवारी ने सीट छोड़ी है या कोई और कारण है? लेकिन चंडीगढ़ की प्रतिष्ठा की सीट जीतने का दबाव उन पर होगा।