पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आखिरकार कोलकाता के पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल को हटाया और साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय के भी दो बड़े अधिकारियों को हटा दिया है। यह काम वे एक महीने पहले भी कर सकती है। नौ अगस्त को आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और जघन्य हत्या की घटना हुई थी। उसी दिन से राज्य भर के जूनियर डॉक्टरों ने प्रदर्शन और हड़ताल शुरू कर दी थी। उनकी पहली मांग पुलिस कमिश्नर को हटाने की थी। सबको दिख रहा था कि घटना के बाद ममता की सरकार ने कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष को बचाने का प्रयास किया और यह भी सबको दिख रहा था कि पुलिस की भूमिका संदिग्ध है।
ममता बनर्जी की पुलिस ने पीड़ित परिवार को पैसे का प्रस्ताव दिया था। अस्पताल प्रशासन ने इस जघन्य घटना को खुदकुशी ठहराने की कोशिश की थी। पुलिस ने भी मामले की जांच भटकाने का प्रयास किया। ऐसी घटना होने पर राज्य सरकार तत्काल जो कदम उठाती है वह भी ममता बनर्जी ने नहीं उठाया। वे समझती रहीं कि यह घटना भी आई गई हो जाएगी। तभी उन्होंने विवादित प्रिसिंपल को निलंबित करने की बजाय दूसरे कॉलेज में प्रिंसिपल बना कर भेज दिया। कायदे से उन्हें तत्काल प्रिंसिपल को सस्पेंड करना चाहिए था। पुलिस की संदिग्ध भूमिका सामने आते ही पुलिस प्रमुख को हटाना चाहिए था और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए था। हाई कोर्ट ने जब केस की जांच सीबीआई को सौंप दी तब भी ममता ने कोई कार्रवाई नहीं की। डॉक्टरों की हड़ताल जारी रही और ममता कहती रहीं कि दुर्गापूजा में सुरक्षा के लिए उनको अनुभवी पुलिस अधिकारी की जरुरत है। लेकिन जब दुर्गापूजा का समय आ गया और डॉक्टरों की हड़ताल खत्म नहीं हुई तो उन्हें डीजीपी को भी हटाना पड़ा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर भी कार्रवाई करनी पड़ी। यह काम पहले हुआ होता तो इतनी फजीहत नहीं झेलनी होती।