कर्नाटक में कांग्रेस आलाकमान को बड़ा फैसला करना है। पिछले साल मई में चुनाव नतीजों के बाद बड़ी मुश्किल से डीके शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी किया गया। उनको उप मुख्यमंत्री के साथ साथ प्रदेश अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी दी गई। उस समय इस बात की भी चर्चा हुई थी कि सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के बीच कांग्रेस आलाकमान ने बारी बारी से मुख्यमंत्री बनने का समझौता कराया है। यानी पहले ढाई साल सिद्धरमैया रहेंगे और उसके बाद शिवकुमार बनेंगे और जब तक डीके शिवकुमार सीएम नहीं बनेंगे तब तक प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। हालांकि सिद्धरमैया खेमे का दावा है कि लोकसभा चुनाव तक ही डीकेएस को दोहरी जिम्मेदारी दी गई थी और अब उनको प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ना होगा। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के अलावा प्रदेश की राजनीति में नए खेमे भी उभर आए हैं और साथ ही अराजनीतिक ताकतें भी सक्रिय हो गई हैं।
पार्टी के दिग्गज दलित नेता जी परमेश्वर भी सक्रिय हो गए हैं और वे नए मुख्यमंत्री और नए प्रदेश अध्यक्ष की बात कर रहे हैं। इस बीच अहिंदा समूह यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों के जो समूह हैं वे चेतावनी देने लगे हैं कि अगर सिद्धरमैया को हटाया गया तो ठीक नहीं होगा। इस बीच एक लिंगायत संत भी इस राजनीति में कूदे और उन्होंने कह दिया कि अब किसी लिंगायत को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। सो, कुल मिला कर कर्नाटक में राजनीतिक ताकतों और नेताओं के अलावा कई अराजनीतिक शक्तियां भी सक्रिय हैं। शिवकुमार के विरोधी जरकिहोली बंधुओं का दबाव अलग बढ़ रहा है। जब से शिवकुमार के भाई डीके सुरेश बेंगलुरू ग्रामीण सीट पर चुनाव हारे हैं तब से उनके ऊपर हमले तेज हुए हैं। बहरहाल, जानकार सूत्रों का कहना है कि राज्य में तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव हैं। उसके बाद संगठन और सरकार के बारे में कुछ फैसला होगा।