अगर सत्ता में हिस्सेदारी के कथित फॉर्मूले की बात करें तो इस साल के अंत में कर्नाटक में सिद्धारमैया की जगह डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। पता नहीं ऐसा कोई फॉर्मूला है या नहीं लेकिन मई 2022 में जब सरकार बनी तो सिद्धारमैया मुख्यमंत्री हुए और शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री के साथ साथ प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा गया। तब कहा गया कि ढाई साल के बाद सत्ता बदलेगी और शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह भी कहा गया था कि उसी समय वे अध्यक्ष पद छोड़ेंगे। तभी इस साल की शुरुआत के साथ ही दोनों खेमों में खींचतान चालू हो गई। शिवकुमार का खेमा इस साल बदलाव की बात कर रहा है तो दूसरी ओर कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद खाली नहीं हो रहा है।
खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि मुख्यमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है। दूसरी ओऱ शिवकुमार की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात हुई तो शिवकुमार ने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष का पद मार्केट में बिकने के लिए उपलब्ध नहीं है। दोनों तरफ से पोजिशनिंग हो रही है। अब सवाल है कि कांग्रेस आलाकमान कब तक शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों बनाए रखेगा? कांग्रेस आलाकमान की दुविधा इस वजह से है कि दोनों नेता मतदाताओं के बीच अच्छा खासा असर रखते हैं। सिद्धारमैया पार्टी के अहिंदा यानी ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोटों में असर रखते हैं तो शिवकुमार ने वोक्कालिगा वोट में अपना आधार पहले से बड़ा किया है और साथ ही लिंगायत भी उनके साथ जुड़े हैं। पिछले दिनों शिवकुमार के विरोधी और राज्य सरकार के मंत्री सतीश जरकिहोली ने नए साल की पार्टी दी, जिसमें सिद्धारमैया समर्थकों का जुटान हुआ। उस समय शिवकुमार देश से बाहर छुट्टी मनाने गए थे। गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के ही है और उनको ही इस विवाद का कोई रास्ता निकालना है।