Kailash Gehlot, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत ने पार्टी छोड़ी नहीं कि पार्टी के नेताओं ने उनका चरित्रहनन शुरू कर दिया। एक दिन पहले तक गहलोत सबसे ईमानदार पार्टी के सबसे ईमानदार नेताओं में शामिल थे। लेकिन इस्तीफे की चिट्ठी भेजते ही वे बेईमान हो गए। पिछले सात साल से दिल्ली सरकार में मंत्री रहे गहलोत सबसे सक्षम और योग्य मंत्रियों में गिने जाते थे। केजरीवाल ने जेल से निकल कर जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान किया तो मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गहलोत का भी नाम था। उस समय हरियाणा के चुनाव होने वाले थे और इसलिए माना जा रहा था कि किसी जाट को सीएम बना कर केजरीवाल हरियाणा की राजनीति भी साधेंगे। लेकिन अंत में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हुआ और गहलोत उनकी सरकार में भी मंत्री बने।
कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का ईमानदारी पर दोहरा मापदंड
इसका मतलब है कि कथित तौर पर सबसे ईमानदार पार्टी और सबसे ईमानदार सरकार चलाने वाले केजरीवाल को Kailash Gehlot की ईमानदारी पर कोई संदेह नहीं था तभी उन्होंने 21 सितंबर को आतिशी की सरकार में भी गहलोत को मंत्री बनाया। लेकिन दो महीने बाद 17 नवंबर को जब कैलाश गहलोत ने सरकार और पार्टी से इस्तीफा दिया तो एक साथ पार्टी के तमाम नेता उन पर टूट पड़े। सबने अपने अपने तरीके से साबित किया कि गहलोत बेईमान हैं और सीबीआई व ईडी के डर से पार्टी छोड़ी है। सोचें, क्या इससे केजरीवाल और उनकी पार्टी ने अपने को एक्सपोज नहीं कर लिया? क्या इससे यह साबित नहीं होता है कि केजरीवाल के लिए ईमानदारी कोई वस्तुनिष्ठ और मूर्त चीज नहीं है, बल्कि एक सापेक्षिक चीज है, जिसके मुताबिक जो उनके साथ है वह ईमानदार है और जो साथ छोड़ देगा वह बेईमान है?
इतना ही नहीं इस मसले पर रविवार, 17 नवंबर को केजरीवाल ने जो अहंकार दिखाया वह भी गजब है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे जब कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब देना जरूरी नहीं समझा। केजरीवाल ने माइक अपने साथ बैठे दुर्गेश पाठक की ओर बढ़ा दिया। उनके सामने दुर्गेश पाठक ने कहा कि Kailash Gehlot सीबीआई और ईडी से काफी परेशान थे इसलिए उनको तो भाजपा में जाना ही था। इसकी शुरुआत आप नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने की, जिन्होंने रविवार को गहलोत के इस्तीफे के बाद कहा कि भाजपा की वाशिंग मशीन काम कर रही है।
गहलोत के खिलाफ आरोपों पर आप का दोहरा रवैया: ईमानदारी या राजनीतिक खेल?
संजय सिंह के कहने का क्या यह मतलब था कि गहलोत बेईमान हैं और भाजपा की वाशिंग मशीन उनको साफ करेगी? सवाल है जब संजय सिंह और आप के नेता जानते थे कि गहलोत बेईमान हैं तो उनको सरकार में क्यों बना कर रखा गया था? क्या आप में बने रहने पर पार्टी भ्रष्टाचार के प्रति आंख बंद किए रहती है। अगर ऐसा नहीं है तो आप के नेता कहें कि गहलोत ईमानदार हैं और उन्हें झूठे मुकदमे में फंसाने की बात करके आप छोड़ने को मजबूर किया गया है।
गौरतलब है कि गहलोत का भी नाम शराब घोटाले में आया था और उनसे पूछताछ भी हुई थी। लेकिन उससे आगे कार्रवाई नहीं हुई। कह सकते हैं कि कई और नेताओं की तरह गहलोत के खिलाफ कार्रवाई लायक सबूत नहीं मिले। फिर भी आप नेताओं की नजर में वे बेईमान हैं लेकिन जिन लोगों के खिलाफ सबूत मिले, जो जेल में बंद रहे, जिनके खिलाफ सबूत देकर अदालत ने टिप्पणी की वे सब लोग ईमानदार हैं क्योंकि वे आप में बने हुए हैं!
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