झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और उससे पहले जयराम महतो एक चुनौती के तौर पर उभरे हैं। भाजपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा और आजसू तीनों पार्टियों के लिए यह खतरे की घंटी है। लोकसभा चुनाव में जयराम महतो ने कम से कम आधा दर्जन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार उतार कर अपनी ताकत दिखाई। वे खुद गिरिडीह लोकसभा सीट पर चुनाव लड़े थे और उनको तीन लाख 47 हजार वोट मिला था। हालांकि इसके बावजूद भाजपा की सहयोगी आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी जीत गए लेकिन उनका 22 फीसदी घट गया। पिछली बार उनको 57 फीसदी वोट मिले थे और इस बार 35 फीसदी मिला। जेएमएम के मथुरा महतो को 29 फीसदी और जयराम महतो को 27 फीसदी वोट मिला। जेएमएम का वोट छह फीसदी कम हुआ। इसका मतलब है कि आजसू का जो 22 फीसदी वोट कम हुआ उसमें से 21 फीसदी वोट जयराम महतो को गया।
जयराम महतो ने हजारीबाग सीट पर संजय कुमार महतो को उतारा था, जिनको एक लाख 57 हजार वोट मिला। रांची में देवेंद्र नाथ महतो को एक लाख 32 हजार और धनबाद में मोहम्मद अखलाक अंसारी को 80 हजार वोट मिला। हर सीट पर उन्होंने भाजपा और आजसू को ज्यादा नुकसान पहुंचाया। तभी यह सबसे बड़ी गुत्थी है कि जयराम महतो के पीछे कौन ताकत है, जहां से उनको चुनाव लड़ने के संसाधन मिल रहे हैं? पहले कहा जा रहा था कि भाजपा के ही कुछ लोग उनकी मदद कर रहे हैं ताकि सुदेश महतो को कमजोर किया जाए और विधानसभा चुनाव में उनकी मोलभाव करने की ताकत कम की जाए। इस वजह से सुदेश महतो प्रदेश भाजपा के कई नेताओं से नाराज भी थे। लेकिन अब कहा जा रहा है कि भाजपा विरोधी लोग जयराम महतो को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके पीछे जो भी हो लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले जयराम महतो का इस तरह से उभरना एक बड़ी परिघटना है।