झारखंड में हेमंत सोरेन को कभी भी अपनी पार्टी की चिंता करने की जरुरत नहीं पड़ती है लेकिन उनको 24 घंटे अपनी सहयोगी कांग्रेस के बारे में सोचते रहना होता है। हेमंत ने पिछले पांच साल कांग्रेस के विधायकों की चौकीदारी की तो पार्टी बची थी। अब फिर से कांग्रेस के 16 विधायक जीत गए हैं तो पार्टी ने पहले मंत्री पद तय करने में बहुत समय लगाया, जिसकी वजह से हेमंत सोरेन को अकेले शपथ लेनी पड़ी। उसके बाद जब कांग्रेस के नाम तय हुए तो कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से इसकी जानकारी देने के लिए हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी लिखी गई। कांग्रेस नेताओं ने वह चिट्ठी लीक कर दी, जिससे मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन की ऑथोरिटी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। चिट्ठी में वेणुगोपाल ने मंत्रियों के नाम और उनके नाम के आगे उनके विभाग भी लिख कर भेजे हैं।
सवाल है कि कांग्रेस कैसे इस तरह से आधिकारिक कम्यूनिकेशन मुख्यमंत्री को भेज सकती है? क्या केसी वेणुगोपाल को पता नहीं है कि मंत्री बनाना और विभाग बांटना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है? कांग्रेस यह जरूर तय कर सकती है कि उसकी ओर से कौन मंत्री बनेगा और किसे कौन सा विभाग मिलेगा लेकिन यह सब कुछ अनौपचारिक तरीके से होना चाहिए। संसदीय राजनीति में मुख्यमंत्री की गरिमा बनाए रखने के लिए ये काम अनौपचारिक रूप से होते हैं। वेणुगोपाल चाहते तो प्रभारी के जरिए यह सूचना मुख्यमंत्री को पहुंचवा सकते थे। लेकिन उन्होंने एक्सेल सीट में मंत्री और विभागों के नाम के साथ चिट्ठी लिखी और कांग्रेस नेताओं ने चिट्ठी लीक कर दी। अब मुख्य विपक्षी भाजपा को एक मौका मिल गया यह कहने का कि हेमंत सोरेन की सरकार दिल्ली से चलती है। आगे हर फैसले के समय यह बात कही जाएगी कि हेमंत की सरकार को संविधानेत्तर शक्तियां संचालित कर रही हैँ। वेणुगोपाल ने अपनी ऑथोरिटी दिखाने के लिए मुख्यमंत्री की ऑथोरिटी को दांव पर लगा दिया।