भारतीय जनता पार्टी में छोटे बड़े कई चाणक्य हैं। तभी अगर उन्होंने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन को पार्टी में शामिल कराने का फैसला किया है तो कुछ सोच कर ही किया होगा। लेकिन राज्य की राजनीतिक स्थिति को देख कर ऐसा लग रहा है कि चम्पई सोरेन के जो रणनीतिक बढ़त भाजपा हासिल कर सकती वह उसने गंवा दिया है। पहले कहा जा रहा था कि चम्पई अलग पार्टी बना कर चुनाव लड़ेंगे। पिछली बार तीन दिन दिल्ली में रह कर जब वे लौटे थे तब उन्होंने भी कहा था कि वे अपना संगठन बना कर राजनीति करेंगे। लेकिन अचानक वे फिर दिल्ली पहुंचे और तय हुआ कि वे रांची में 30 अगस्त को भाजपा में शामिल होंगे। सवाल है कि भाजपा में शामिल होने से उनको क्या मिलेगा और भाजपा को क्या फायदा होगा?
ध्यान रहे झारखंड में आदिवासी भाजपा से नाराज हैं। 2014 में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने के बाद ही यह हुआ कि संथालपरगना, छोटानागपुर और कोल्हान तीनों के आदिवासी एक साथ जेएमएम को वोट देने लगे। तभी पूरे राज्य में आदिवासी के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में से भाजपा सिर्फ दो सीट जीत पाई। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद भाजपा के विरोध में आदिवासी वोटों का एकीकरण और मजबूत हुआ। अगर अपने सम्मान का मुद्दा बना कर चम्पई अलग पार्टी बनाते तो कुछ आदिवासी वोट उनको मिल सकता था लेकिन भाजपा के साथ जाने को गद्दारी की तरह देखा जा रहा है। कोल्हान क्षेत्र की 15 सीटों में से भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है। वह चम्पई के सहारे कुछ सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। लेकिन वह भी तब होता, जब चम्पई अकेले लड़ते। भाजपा से लड़ने पर उनकी पारंपरिक सरायकेला सीट भी खतरे में आएगी।