झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन कोल्हान इलाके के सम्मानित और लोकप्रिय नेता हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि वे बहुत तिकड़मी या राजनीतिक दांवपेंच जानने वाले नेता नहीं हैं। उनके इसी गुण की वजह से 2009 में विधानसभा का उपचुनाव हारने और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते समय शिबू सोरेन ने कांग्रेस नेतृत्व के सामने चम्पई सोरेन का नाम पेश किया था। तब शिबू सोरेन ने साफ कर दिया था कि चम्पई नहीं तो चुनाव। वही हुआ भी। तब किसी की सरकार नहीं बनी और चुनाव हुआ। उस घटना के 15 साल बाद 2024 में फिर वैसी ही स्थितियां बनीं तो हेमंत सोरेन ने चम्पई पर भरोसा जताया। उनको मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद वे अपने को इस पद का स्वाभाविक दावेदार मानने लगे। उनके आसपास के लोगों ने भी उनको चने के झाड़ पर चढ़ाया। नतीजा यह हुआ कि हेमंत सोरेन का उनके प्रति अविश्वास बढ़ा।
इसकी शुरुआत उसी दिन हो गई थी, जिस दिन हेमंत जेल से छूटे थे। उस दिन शाम में चार बजे चम्पई सोरेन ने कैबिनेट की बैठक रखी थी। हेमंत को जमानत मिलने और जेल से रिहा होने की खबरों के बावजूद वे कैबिनेट बैठक रद्द करके उनको रिसीव करने नहीं पहुंचे। उन्होंने पहले कैबिनेट की बैठक की। समझा जा रहा है कि उसके बाद से हेमंत ने इनको हटाने का फैसला किया। जब हेमंत फिर सीएम बने तो चम्पई उनकी सरकार में मंत्री बन गए। लेकिन तब तक दोनों तरफ अविश्वास हो चुका था। इस अविश्वास में चम्पई को एक्सपोज कर दिया हेमंत के समर्थक विधायकों ने ही।
कम से कम तीन विधायक समीर मोहंती, रामदास सोरेन और दशरथ गगराई उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने चम्पई सोरेन में हवा भरी। जब चम्पई कोलकाता से दिल्ली पहुंचे तो उनके नजदीकी लोगों की ओर से इन तीनों विधायकों के नाम भी मीडिया में और भाजपा नेताओं को दिए गए। जब मीडिया में सब ओपन हो गया तो ये तीनों विधायक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पाले में खड़े गए। इससे चम्पई सोरेन और साथ ही भाजपा का खेल भी एक्सपोज हो गया।