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झारखंड पर इतना ध्यान क्यों है?

यह लाख टके का सवाल है कि विधानसभा के चुनाव जम्मू कश्मीर और हरियाणा में घोषित हो गए हैं और जल्दी ही महाराष्ट्र में भी चुनाव होने वाले हैं लेकिन भाजपा का इतना ज्यादा फोकस झारखंड पर क्यों है? भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को झारखंड चुनाव का सह प्रभारी बनाया है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दो भारी भरकम विभागों के केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रभारी हैं। इन दोनों के अलावा किसी न किसी तरह से पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी के भी झारखंड की राजनीति में शामिल होने की खबर है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के दिग्गज कुर्मी नेता संतोष गंगवार को झारखंड का राज्यपाल बना कर भेजा है। कुल मिला कर ऐसा लग रहा है, जैसे भाजपा कैसे भी राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए काम कर रही है।

इसके पीछे क्या सिर्फ राजनीतिक उद्देश्य है या कुछ और भी कारण हैं? यह सवाल इसलिए है क्योंकि देश के सबसे ज्यादा खनिज संपदा वाले तीन राज्यों में से दो में भाजपा की सरकार बन गई है। उसने ओडिशा और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बना ली है। ओडिशा में तो पहली बार भाजपा का अपना मुख्यमंत्री बना है। अगर झारखंड में भाजपा की सरकार बन जाती है तो खनिज संपदा वाले राज्यों का त्रिकोण पूरा हो जाएगा। तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार होगी। देश के कोयला व लौह इस्पात सहित बॉक्साइट और मैंगनीज की खदानों की भरमार है इन राज्यों में। ऊपर से केंद्र में भाजपा की सरकार है। यानी देश की अधिकतम खनिज संपदा का नियंत्रण भाजपा के हाथ में आ जाएगा।

तभी माना जा रहा है कि इसके पीछे सिर्फ राजनीतिक उद्देश्य नहीं है। इसी क्रम में याद दिलाया जा रहा है कि कैसे झारखंड में भाजपा की सरकार थी तब देश के सबसे अमीर कारोबारी गौतम अडानी की कंपनी को गोड्डा में पावर प्लांट लगाने की मंजूरी मिली थी और दिलचस्प तरीके से इस प्लांट की पूरी 16 सौ मेगावाट बिजली बांग्लादेश को बेचने की इजाजत मिल गई थी। सोचें, जिस राज्य में पावर प्लांट लगा उस राज्य की सरकार के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट नहीं हुआ। अब केंद्र सरकार इसमें भी बदलाव करने जा रही है। खबर है कि अब अडानी समूह को इस बात की इजाजत दी जा रही है वह अपने पावर प्लांट की बिजली की घरेलू बिक्री भी कर सके। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट होने के बाद यह बदलाव हो रहा है। तभी सोशल मीडिया में यह दावा किया जा रहा है कि भाजपा अडानी के मामले में मनमाने तरीके से नियम बनाती और बदलती रही है। अगर प्राकृतिक संपदा से सर्वाधिक समृद्ध तीन राज्यों में भाजपा की सरकार बनती है तो उसका क्या असर होता है यह देखने वाली बात होगी।

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