झारखंड में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त किए हैं। मध्य प्रदेश के करीब 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे केंद्रीय कृषि व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। उनके साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सह प्रभारी बनाए गए हैं। सबको पता है कि हिमंत बस्वा सरमा का झारखंड की राजनीति में किसी न किसी रूप में दखल रहा है। अलग अलग घटनाओं के समय उनका नाम उछलता रहा है। इन दोनों के अलावा भाजपा संगठन के प्रभारी पहले से ही लक्ष्मीकांत बाजपेयी हैं। संगठन महामंत्री करमबीर सिंह हैं और आरएसएस की ओर से नागेंद्र बिहार और झारखंड का काम देख रहे हैं।
सो, संगठन और चुनाव लड़ाने वाली पूरी टीम गैर आदिवासी है। प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी जरूर आदिवासी समाज के हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा गैर आदिवासी यानी सामान्य मतदाताओं पर ज्यादा फोकस कर रही है। आदिवासी राजनीति की सीमाएं उसके सामने स्पष्ट है। बाबूलाल मरांडी जब भाजपा में नहीं थे तब 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पांच में से तीन आदिवासी आरक्षित सीटों से जीती थी और उसी साल विधानसभा चुनाव में उसे 28 में से महज दो सीटें मिली थीं। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा पांच में से एक भी आदिवासी आरक्षित सीट नहीं जीत पाई है। उसके बाद ही ओबीसी और सामान्य जातियों पर भाजपा का ध्यान गया है। शिवराज सिंह चौहान की पहचान बहुत बड़ी है। अन्य पिछड़ी जातियों में उनका नेतृत्व स्थापित है। इसी तरह हिमंत बिस्वा सरमा की हिंदू पहचान पिछले कुछ समय में बहुत मजबूती से उभरी है। वे घुसपैठ और मुसलमानों पर खुल कर बोलते हैं। इन दोनों को झारखंड का चुनाव प्रभारी बना कर भाजपा ने एक नया दांव खेला है। यह दांव तमाम गैर आदिवासी, गैर मुस्लिम और गैर ईसाई वोट को एकजुट करने का है।