बिहार से अलग झारखंड में भाजपा की स्थिति बेहतर है, कम से कम लोकसभा चुनाव में। इसलिए वह वहां टिकट काटने का प्रयोग कर सकती है। पिछले चुनाव में भाजपा ने यह प्रयोग किया था। उसने कोडरमा के सांसद रविंद्र राय की टिकट काट कर राजद से आईं अन्नपूर्ण देवी को दे दी थी और अपनी पारंपरिक गिरिडीह सीट सहयोगी पार्टी आजसू को दे दी थी, जिसकी वजह से उसके पांच बार के सांसद रविंद्र पांडेय चुनाव नहीं लड़ पाए थे। इसी तरह रांची सीट पर भाजपा ने रामटहल चौधरी जैसे पुराने नेता की टिकट काट कर कुर्मी समीकरण से बाहर के नेता संजय सेठ को टिकट दे दिया था और वे जीत भी गए थे। भाजपा ने राज्य की 14 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी और ऐसा इसके बावजूद हुआ था कि कांग्रेस, जेएमएम और जेवीएम तीन बड़ी पार्टियां एक साथ मिल कर लड़ीं थीं।
अब जेवीएम का भाजपा में विलय हो गया है और बाबूलाल मरांडी पार्टी विधायक दल के नेता हैं। इसके अलावा आजसू के साथ भी तालमेल है। इसलिए भाजपा प्रयोग करने की स्थिति में है। वह पिछली बार की हारी हुई दोनों सीटों- पूर्वी सिंहभूम और राजमहल से नया उम्मीदवार दे सकती है। इसके अलावा पिछली बार मुश्किल से जीती सीटों- लोहरदगा, खूंटी और दुमका को लेकर भी भाजपा आलाकमान चिंता में है। जेएमएम और कांग्रेस के साथ बिहार की दोनों बड़ी पार्टियों राजद और जदयू के साथ आने से पलामू की सुरक्षित सीट और चतरा पर भी चिंता बढ़ी है। धनबाद के सांसद पीएन सिंह की उम्र ज्यादा हो गई है और रांची के सांसद संजय सेठ की सेहत ठीक नहीं है। यह भी संभव है कि इस बार आजसू को लोकसभा की कोई सीट नहीं दी जाए। उसके साथ सिर्फ विधानसभा में तालमेल हो। सो, इस बार संभव है कि भाजपा की जीती हुई आधी सीटों पर उम्मीदवार बदल जाए और हारी हुई दोनों सीटों पर नए उम्मीदवार उतरें।