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भाजपा का आदिवासी और कोल्हान पर फोकस

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भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे से आदिवासी और कोल्हान इलाके को साधने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। गौरतलब है कि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर हार गई। इसी तरह 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान इलाके की 15 सीटों में से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि इस क्षेत्र में जमशेदपुर जैसा मेट्रोपोलिटन शहर है। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास भी जमशेदपुर के ही रहने वाले थे और उस समय केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री रहे अर्जुन मुंडा भी जमशेदपुर के ही हैं। इनके रहते भाजपा न तो जमशेदपुर में एक भी सीट जीत पाई और न आसपास के हो आदिवासी बहुल इलाकों में एक भी सीट जीत पाई। तभी इस बार भाजपा ने इस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है।.

गौरतलब है कि झारखंड के इतिहास में जो सात लोग मुख्यमंत्री बने हैं उनमें से चार कोल्हान इलाके के हैं और चारों इस समय भाजपा में हैं। कोल्हान को साधने के लिए ही जेएमएम से तोड़ कर चम्पई सोरेन को भाजपा में शामिल कराया गया है। उनको कोल्हान टाइगर कहा जाता है और 1991 से अभी तक एक चुनाव छोड़ कर वे हर बार सरायकेला से जीते हैं। हेमंत सोरेन के जेल से निकलने के बाद जेएमएम ने उनको जिस तरह से मुख्यमंत्री पद से हटाया उसे आधार पर बना कर भाजपा ने कोल्हान टाइगर और आदिवासी सम्मान का मुद्दा बनाया है। कोल्हान को साधने के लिए ही कांग्रेस से तोड़ कर मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को भाजपा में लाया गया। अर्जुन मुंडा भाजपा में ही थे लेकिन वे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे तो उनकी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका सुरक्षित सीट से टिकट दी गई। कोल्हान के चौथे मुख्यमंत्री रघुबर दास की बहू को भी टिकट मिली है। इस तरह भाजपा ने पांच सीटों का दांव खेला है। मीरा मुंडा पोटका से, गीता कोड़ा जगन्नाथपुर से, पूर्णिमा दास जमशेदपुर पूर्वी से, चम्पई सोरेन सरायकेला से और बाबूलाल सोरेन घाटशिला से चुनाव लड़ रहे हैं। जिस इलाके में भाजपा एक भी सीट नहीं जीती अगर वहां इनके भरोसे पांच सीट जीत लेती है तो बहुत बड़ी बात होगी….।

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