महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और दोनों चुनावों का एक बुनियादी फर्क यह है कि महाराष्ट्र में जहां प्रदेश नेतृत्व चुनाव लड़ा रहा है और गठबंधन की पार्टियां अपना अपना चुनाव लड़ रही हैं वहीं झारखंड में भाजपा का आलाकमान चुनाव लड़वा रहा है। महाराष्ट्र में भाजपा के पास सिर्फ एक पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस हैं फिर भी उनके पास चुनाव की जिम्मेदारी है, जबकि झारखंड में भाजपा के पास पांच पूर्व मुख्यमंत्री है लेकिन किसी को चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी नहीं दी गई है। सब अपना चुनाव लड़ रहे हैं या अपने परिवार के सदस्यों का चुनाव लड़वा रहे हैं। चुनाव के लिए गठबंधन बनाने से लेकर उम्मीदवार तय करने, मुद्दा तय करने और प्रचार करने तक का सारा जिम्मा केंद्रीय नेतृत्व का है।
भाजपा ने चुनाव प्रचार की ऐसी रणनीति बनाई है कि जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां हो रही हैं वहां फॉलोअप के लिए दूसरा बड़ा नेता रैली कर रहा है। ऐसा लग रहा है कि चुनाव के बाद जो यह गणित बताया जाता है कि प्रधानमंत्री ने जहां रैलियां की उनमें से कितनी सीट भाजपा ने जीती, उस औसत को ठीक करने के लिए फॉलोअप रैलियां हो रही हैं। हर सीट पर कोई न कोई केंद्रीय मंत्री प्रचार करने जा रहा है। नरेंद्र मोदी से ज्यादा रैलियां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की हो रही हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की भी रैलियां हो रही हैं। वे लंबे समय तक झारखंड के प्रभारी रहे हैं और वहां उनकी रिश्तेदारी भी है। इस बार एनडीए ने छह राजपूत उम्मीदवार उतारे हैं तो राजनाथ सिंह के प्रचार का भी बड़ा असर है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां भी हो रही हैं। ठाकुर और व्यापक रूप से हिंदू समाज को उनका भाषण अपील करता है।
भाजपा के दोनों चुनाव प्रभारी जी जान से मेहनत कर रहे हैं। सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तो वहां बेस बनाया हुआ है। वे रैलियां, रोड शो और जनसंपर्क कर रहे हैं। उनके भाषण घनघोर सांप्रदायिक हो रहे हैं। वे कांग्रेस और जेएमएम के मुस्लिम नेताओं के नाम लेकर उनकी तुलना बाबर और औरंगजेब से कर रहे हैं। कट्टर हिंदुवादी मतदाताओं में उनकी अपील बनी है तो किसानों और पिछड़ों के बीच चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने असर बनाया है। केंद्रीय मंत्रियों के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों की सभाएं हो रही हैं। कुल मिला कर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री या मंत्री चुनाव की कमान संभाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि उपचुनाव निपटने के बाद यानी 13 नवंबर के बाद दूसरे प्रदेश के नेताओं की नई खेप प्रचार में उतरेगी।
इसके उलट प्रदेश के सारे नेता अपना चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी स्वतंत्र रूप से कोई सभा नहीं हो रही है। कोई उम्मीदवार किसी प्रदेश नेता को भेजने की मांग नहीं कर रहा है। प्रदेश के बड़े नेताओं का सिर्फ इतना काम है कि वे प्रधानमंत्री या गृह मंत्री की रैली हो तो वहां मंच पर रहें। यह भी केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति है। प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी को अघोषित सीएम दावेदार बाबूलाल मरांडी राज धनवार सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पोटका सीट पर तो पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट पर लड़ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास जमशेदपुर पूर्वी सीट से मैदान में हैं। जेएमएम से आए पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन सरायकेला तो उनके बेटे बाबूलाल सोरेन घाटशिला से लड़ रहे हैं। विधायक दल के नेता अमर बाउरी चंदनक्यारी सीट से उम्मीदवार हैं। भाजपा के आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव भी अपना ही चुनाव लड़ रहे हैं।