पूर्व आईएएस अधिकारी और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार का पार्टी और राज्यसभा से इस्तीफा ममता बनर्जी की राजनीति के लिए खतरे की घंटी है। जवाहर सरकार स्वतंत्र सोच रखने वाले और पढ़े लिखे नेता हैं। वे केंद्र सरकार में थे तब भी उनका कामकाज बहुत वस्तुनिष्ठ था और वे दबाव में फैसला नहीं करने वाले अधिकारी माने जाते थे। उनको अगस्त 2021 में ममता बनर्जी ने राज्यसभा भेजा था और अभी उनका कार्यकाल डेढ़ साल से ज्यादा बचा हुआ है। वे अप्रैल 2026 में रिटायर होते। लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया और पार्टी व सरकार के कामकाज पर सवाल उठाया।
उन्होंने इस्तीफा देने का तात्कालिक कारण तो आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्का और हत्या की घटना के बाद का घटनाक्रम है लेकिन बताया जा रहा है कि वे भ्रष्टाचार के मसले पर पहले से मुखर थे और ममता बनर्जी तक अपनी बात पहुंचाई थी। असल में जवाहर सरकार ने इस बात पर सवाल उठाया है कि आरजी कर अस्पताल की घटना के बाद मामले पर लीपापोती करने और आरोपियों को बचाने के प्रयास किए गए। पुलिस और समूचे प्रशासन का रवैया बहुत खराब था। वे उम्मीद कर रहे थे कि ममता बनर्जी कोई कार्रवाई करेंगी लेकिन उनको निराशा हुई। उनके इस्तीफे से प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों को तो ताकत मिलेगी ही साथ ही भाजपा को भी ताकत मिलेगी। किसी नीतिगत या कामकाज के मसले पर ममता की पार्टी के यह पहला बड़ा इस्तीफा है। इसे शुरुआत माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह नंदीग्राम की तरह के माहौल की शुरुआत है। चुनाव में दो साल से कम समय हैं और उससे पहले ममता बड़ी मुश्किल में फंसती दिख रही हैं।