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जेपीसी के पीछे क्या कोई रणनीति है?

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 10 साल में पहली बार किसी मसले पर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन किया गया है। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन का एक बिल पेश किया, जिसका विपक्ष की ओर से भारी विरोध हुआ। इसी बिल को संयुक्त संसदीय समिति में विचार के लिए भेजा गया है। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने 23 सदस्यों की एक जेपीसी बना दी है। इस जेपीसी के गठन को लेकर दो तरह के दावे हैं। विपक्षी गठबंधन का दावा है कि लोकसभा में उसकी बढ़ी हुई ताकत की वजह से सरकार इस बिल को पास नहीं करा पाई और उसने मजबूरी में जेपीसी का गठन करने की सहमति दी। दूसरी ओर भाजपा की दूसरी और तीसरी कतार के नेता और सोशल मीडिया में दक्षिणपंथी राजनीति का समर्थन करने वाले सक्रिय कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि एक रणनीति के तहत सरकार ने इस मसले पर जेपीसी बनवाने का फैसला किया है।

रणनीति होने न होने के बीच एक बड़ा सवाल इस विधेयक की टाइमिंग को लेकर है। सरकार को पता है कि लोकसभा में इस विधेयक को पास कराने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि उसके पास बहुमत से ज्यादा संख्या है और सहयोगी पार्टियां इसके खिलाफ नहीं हैं। जनता दल यू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने बिल का जोरदार समर्थन करके साबित भी किया। परंतु राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है यह भी सरकार को पता है। एनडीए का बहुमत पहले भी नहीं था लेकिन तब भाजपा की अपनी संख्या एक सौ करीब थी और उसे वाईएसआर कांग्रेस, बीजद आदि का बाहर से समर्थन था। परंतु लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा में भाजपा के आठ सांसद कम हो गए हैं क्योंकि वे लोकसभा सदस्य बन गए। इसके अलावा चार मनोनीत सांसद भी रिटायर हो गए, जो भाजपा के सदस्य थे। इस तरह भाजपा की संख्या 86 रह गई है। ऊपर से जगन का समर्थन भी अब पहले जैसा नहीं है क्योंकि टीडीपी के साथ भाजपा का तालमेल हो गया है।

यह भी हैरान करने वाली बात है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के दो महीने बाद तक चुनाव आयोग ने राज्यसभा सीटों के उपचुनाव की घोषणा की और उपचुनाव के लिए तीन सितंबर की तारीख तय की। चार मनोनीत सीटें भी अभी तक खाली हैं। यानी सरकार राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने को लेकर किसी जल्दबाजी में नहीं है। तभी ऐसा लग रहा है कि उसने पहले से तय किया हुआ था कि अगस्त के पहले हफ्ते में बड़ा फैसला करने की परिपाटी जारी रखते हुए वक्फ बिल पेश करेंगे और उसे जेपीसी को भेजेंगे। इस बिल को जेपीसी में भेजने का एक फायदा सरकार को यह होगा कि विपक्ष यह दावा नहीं कर पाएगा कि ऐसे अहम बिल को सरकार ने एकतरफा और मनमाने तरीके से पास कराया है। सबको पता है कि जेपीसी में सत्तापक्ष का ही बहुमत होता है और उसके हिसाब से ही फैसले भी आते हैं। तभी माना जा रहा है कि जेपीसी की बैठक में बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव की सिफारिश होगी, जिसमें से कुछ को सरकार मान लेगी और कुछ ठुकरा देगी। जब तक जेपीसी की रिपोर्ट आएगी तब तक राज्यसभा में भाजपा की अपनी संख्या एक सौ तक पहुंच जाएगी और जदयू, टीडीपी, शिव सेना, एनसीपी आदि की मदद से वह बहुमत हासिल कर लेगी। तब तक चार राज्यों के विधानसभा चुनाव भी निपट जाएंगे, जिससे कोई भी सहयोगी पार्टी वोटिंग को लेकर असमंजस की स्थिति में नहीं आएगी।

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By NI Political Desk

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