अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति पद संभालेंगे तो एच 1बी वीजा के नियम आसान करेंगे या सख्त करेंगे या कुछ और सुधार करेंगे इसको लेकर अमेरिका में बहस चल रही है। चुनाव से पहले ट्रंप ने कहा था कि वे वीजा के नियम सख्त बनाएंगे। लेकिन चुनाव के पहले कही गई कई बातों से अब वे मुकर रहे हैं, जैसे चुनाव में वे कहते थे कि चीन पर सौ फीसदी आयात शुल्क लगाएंगे और अब कह रहे हैं कि 10 फीसदी लगाएंगे। इसी तरह वीजा के मामले में भी उन्होंने कहा कि एच 1बी वीजा बहुत अच्छा है और उनकी कंपनियों में भी बहुत से लोग इस वीजा के जरिए काम कर रहे हैं। उनके करीबी सहयोगी और दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी इलॉन मस्क ने भी एच 1बी वीजा का समर्थन किया।
हालांकि प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई और वीजा नियम सख्त करने के नाम पर जिन लोगों ने ट्रंप को वोट दिया था उन्होंने इसका विरोध कर दिया। कई रिपब्लिकन नेताओं ने ट्रंप और मस्क के रुख की आलोचना की, जिसके बाद मस्क ने भी स्टैंड बदल दिया। लेकिन अमेरिका में चल रही इस बहस में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा चिंता भारत में है। भारत एक तरफ यह ढिंढोरा पीट रहा है कि वह महान हो गया है और दुनिया भर के लोग उसके यहां कारोबार करने आ रहे हैं और दूसरी ओर इस चिंता में मरा जा रहा है कि अगर एच 1बी वीजा के नियम सख्त हो गए तो क्या होगा? अखबारों में संपादकीय लिखे जा रहे हैं। लेख लिख कर अमेरिका से कहा जा रहा है कि उसे वीजा नियम सख्त नहीं करने चाहिए। अमेरिका को यह बताया जा रहा है कि वह महान बना है तो बाहर के प्रवासियों की मदद से।
सवाल है कि अगर भारत के 10 या 20 हजार लोग हर साल एच 1बी वीजा पर अमेरिका नहीं जाएंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा? उलटे भारत को तो खुश होना चाहिए कि तकनीकी पेशेवेर अमेरिका नहीं जाएंगे तो भारत के काम आएंगे। लेकिन दुख और चिंता जताई जा रही है तो उसका कारण यह असलियत है कि भारत में उनके लिए कोई अवसर नहीं हैं। भारत की उनसे उम्मीद इतनी है कि वे अमेरिका जाकर डॉलर में पैसा भेजेंगे तो आर्थिकी को कुछ फायदा होगा।