दुनिया के शायद किसी और देश में ऐसा नहीं होता होगा कि अगर एक मुकाबले में खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो अगले मुकाबले से पहले उनके बजट में कटौती किया जाए और खिलाड़ियों की संख्या घटाई जाए। उलटा यह होता है कि खराब प्रदर्शन के बाद खर्च बढ़ाया जाता है और खिलाड़ियों का पूल बड़ा किया जाता है यानी उनकी संख्या बढ़ाई जाती है। भारत में इसका उलटा हो रहा है। पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के खराब प्रदर्शन के बाद खिलाड़ियों की संख्या में कटौती होने जा रही है और उन पर होने वाले खर्च में भी आने वाले दिनों में कमी की जा सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मिशन ओलंपिक सेल यानी एमओसी के सुझावों पर ऐसा किया जाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत ने खिलाड़ियों की ओलंपिक तैयारी पर कोई सैकडों या हजारों करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक टोक्यो ओलंपिक से पेरिस ओलंपिक के बीच यानी 2021 से 2024 के तीन साल में टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम यानी टीओपीएस के तहत 72 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। यह रकम तीन सौ खिलाड़ियों के ऊपर खर्च की गई थी। सोचें, तीन सौ खिलाड़ियों पर साल में औसतन 24 करोड़ रुपए का खर्च क्या होता है? हालांकि यह भी 2016 के रियो मुकाबले से दोगुना था! लेकिन जब पेरिस में भारतीय दल का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा तो अब कहा जा रहा है कि तीन सौ से कम खिलाड़ियों को इसका लाभ दिया जाएगा। अगर भारत को खेल महाशक्ति बनना है और अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर अमेरिका, रूस, चीन आदि के वर्चस्व को चुनौती देनी है तो खेल पर होने वाले खर्च में कई गुना बढ़ोतरी की जरुरत है। उसमें कटौती के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए।