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छोटे देशों में भी कूटनीति कारगर नहीं!

बांग्लादेश से पहले नेपाल में राजनीतिक जोड़ तोड़ के जरिए सत्ता बदली। अचानक भारत विरोधी व चीन समर्थक केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बन गए और भारत कुछ नहीं कर सका। नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के नेता पुष्प कमल दहल मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल के समर्थन से बनी थी। चीन समर्थक ओली ने पिछले दिनों समर्थन वापस ले लिया, जिससे प्रचंड की सरकार गिर गई और फिर ओली ने नेपाली कांग्रेस पार्टी से तालमेल करके सरकार बना ली। वे चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। चीन लगातार नेपाल की अंदरूनी राजनीति में दखल बनाए हुए है लेकिन भारत को इस बदलाव का अंदाजा पहले से नहीं हुआ।

उससे भी पहले चुनाव के जरिए मालदीव में सत्ता बदली थी। अप्रैल में हुए चुनाव में मुइज्जू की पार्टी पीएनसी को बहुमत मिल गया। भारत समर्थक मोहम्मद सोलेह की पार्टी बुरी तरह हारी। उस समय के घटनाक्रम से ऐसा लगा था कि भारत की खुफिया एजेंसियों और कूटनीतिक चैनल्स को इसका भी अंदाजा नहीं था। तभी भारत बिल्कुल बैकफुट पर आ गया, जब नए राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारतीय सेना को वहां से हटने को कहा। ध्यान रहे इसके बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप की यात्रा हुई और लक्षद्वीप बनाम मालदीव की बहस शुरु हुई। पर्यटन कूटनीति के जरिए मालदीव को दबाने का प्रयास हुआ। बहरहाल, श्रीलंका से लेकर मालदीव और अफगानिस्तान, नेपाल से लेकर बांग्लादेश तक भारत मानवीय मदद भेजता है लेकिन अपना ऐसा महत्व नहीं बना पाता है, जिससे वह कूटनीतिक व सामरिक लाभ हासिल कर सके।

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