कांग्रेस पार्टी कभी पहले की गलतियों से सबक नहीं ले सकती है और न सफलता के लिए आजमाए गए फॉर्मूले को आगे आजमाती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विपक्षी पार्टियों के साथ मिल कर लड़ी और खुद ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद नहीं की तो उसको फायदा हुआ। लेकिन फिर विधानसभा चुनाव आते ही वह उस फॉर्मूले को भूल गई और ज्यादा सीट लड़ने की जिद करने लगी। इस जिद में झारखंड का मामला उलझ गया। हालांकि अंत में गठबंधन की सभी पार्टियों के बीच फॉर्मूला निकला है और बची हुई सीटों पर भी बातचीत हो जाएगी लेकिन पहले चरण का नामांकन शुरू होने के कई दिन बाद तक कांग्रेस की वजह से सीटों का बंटवारा अटका रहा। राज्य की मुख्य प्रादेशिक पार्टी, जो गठबंधन का नेतृत्व कर रही है वह जेएमएम है, जिसने कांग्रेस को कहा था कि राजद उसका अखिल भारतीय स्तर पर सहयोगी है तो कांग्रेस को अपने कोटे से उसको सीटें देनी चाहिए। लेकिन कांग्रेस ने सिर्फ जेएमएम से तालमेल किया और राजद को छोड़ दिया।
कांग्रेस और जेएमएम ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी, जिससे राजद के नेता भड़के। यह सही है कि झारखंड में राजद का अब कोई खास वजूद नहीं है लेकिन मैसेजिंग के लिए उसकी जरुरत थी। इतना ही नहीं कांग्रेस और जेएमएम के नेताओं ने सीपीआई माले के नेता दीपांकर भट्टाचार्य को बुला कर बात करने की जरुरत नहीं समझी। सोचें, बिहार में सीपीआई माले ने 12 विधानसभा सीटें जीती हैं और झारखंड में कम से कम आधा दर्जन सीटों पर उसका मजबूत असर है। बाकी सभी सीटों पर उसका वोट आधार और कैडर है। पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस अपने कोटे से राजद को और जेएमएम अपने कोटे से सीपीआई माले को सीट देगी। लेकिन यह फॉर्मूला भी नहीं बना। इसका नतीजा यह हुआ कि सीट बंटवारा और उम्मीदवारों घोषणा में देरी हुई और जमीनी स्तर पर सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं में भी आखिरी तक कंफ्यूजन बना रहा। इसके उलट भाजपा ने गठबंधन भी पहले तय किया और उम्मीदवारों की घोषणा भी पहले कर दी।