india alliance : पुरानी कहावत है कि अपनी बुद्धि सबको अधिक लगती है। यह कहावत हर आम आदमी के लिए सही है लेकिन नेताओं के लिए कुछ ज्यादा ही सही है।
सारे नेता अपने को सबसे बुद्धिमान और यहां तक कि सर्वज्ञ मानते हैं। अगर वह सत्ता में है तब तो वह समझता है कि उसकी बुद्धि के आगे सब फेल हैं।
अपनी इसी ‘बुद्धिमता’ और ‘सर्वज्ञता’ में आमतौर पर नेता मुंह के बल गिरते हैं। जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल गिरे हैं।
उनको भी चुनाव से पहले लग रहा था कि वे सब जानते हैं और दिल्ली में चुनाव जीतने के लिए उनको किसी की जरुरत नहीं है।
हरियाणा में कांग्रेस आलाकमान और भूपेंद्र सिंह हुड्डा यही मानते थे कि वे चुनाव जीत रहे हैं और उनको किसी की जरुरत नहीं है। (india alliance)
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अपने दम पर भाजपा को हरा देंगी (india alliance)
अब ममता बनर्जी को भी यही लग रहा है कि उनको किसी की जरुरत नहीं है। वे दावा कर रही हैं कि वे अपने दम पर भाजपा को हरा देंगी और दो तिहाई बहुमत से सरकार बना लेंगी।
दिल्ली और कई दूसरे राज्यों के मतदान के बाद हुए सर्वेक्षणों से यह जाहिर हुआ है कि राज्यों में चुनाव जीतने के लिए सिर्फ भाजपा विरोध या मोदी विरोध पर्याप्त नहीं है। (india alliance)
इस बात को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने समझा था। तभी उन्होंने कांग्रेस के साथ साथ राजद और लेफ्ट पार्टियों को भी अपने साथ जोड़ने के हर जतन किए। उन्होंने कोई जोखिम नहीं किया। उलटे कम सीटें लेकर चुनाव लड़े और पहले से ज्यादा सीटों पर जीते।
उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की एनसीपी इस बात के लिए लड़ते रहे कि ज्यादा सीट कौन लड़ेगा। (india alliance)
सबने यही सोचा कि चुनाव तो जीत ही रहे हैं तो ज्यादा सीट लड़ेंगे तो सीएम हमारा बनेगा। इसी सोच में महाराष्ट्र की कुछ छोटी पार्टियों को गठबंधन में शामिल नहीं कराने का फैसला हुआ। नतीजा यह हुआ कि महा विकास अघाड़ी बुरी तरह से हारी।
कांग्रेस की जरुरत नहीं
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की पार्टियों का यह इतना बड़ा संकट है, जिसका कोई समाधान नहीं है। ऐसे सारे नेता गठबंधन की जरुरत पर बात करेंगे लेकिन साथ ही यह भी कहेंगे कि उनके राज्य में जरुरत नहीं है।
वहां तो वे अकेले सक्षम हैं भाजपा को हराने में। यही ममता बनर्जी की कहानी है। वे कह रही हैं कि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिल कर लड़े होते तो भाजपा को हरा सकते थे। इसके लिए वे कांग्रेस को दोष दे रही हैं। (india alliance)
सवाल है कि अगर वे ऐसा सोचती हैं तो फिर उन्होंने दोनों का तालमेल कराने की कोई पहल क्यों नहीं की? इसके बाद वे अपने राज्य के लिए कह रही हैं कि वहां कांग्रेस की जरुरत नहीं है।
लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट के अलग लड़ने से अगर चुनाव में नुकसान हो जाएगा तो उसके बाद कहेंगी कि कांग्रेस ने हरवा दिया। (india alliance)
हो सकता है कि वे बहुत मजबूत हों लेकिन 15 साल की एंटी इन्कम्बैंसी किसी भी पार्टी पर भारी पड़ती है। ऐसे में समझदारी इसमें होती है कि थोड़ा पीछे हट कर नया समीकरण बनाएं। इससे सरकार के प्रति लोगों की धारणा बदलती है और स्थानीय स्तर पर भी एंटी इन्कम्बैंसी कम होती है।