उपचुनाव में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ बिखर गया। बिहार जैसे एकाध राज्यों को छोड़ दें तो गठबंधन की सभी पार्टियां अपना अपना चुनाव लड़ रही हैं। सोचें, 13 राज्यों में 47 विधानसभा सीटों और दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, जिसे मिनी आम चुनाव माना जा रहा है लेकिन उसमें विपक्षी पार्टियों में तालमेल नहीं हुआ। दो राज्यों में साथ ही विधानसभा के चुनाव भी हो रहे हैं। वहां तो गठबंधन बना है और काम भी कर रहा है लेकिन अगर इसके साथ ही उपचुनाव में भी सभी पार्टियां मिल कर लड़ती हैं तो लोकसभा चुनाव जैसी धारणा बनाई जा सकती है। लेकिन उपचुनावों को लेकर पार्टियों के नेताओं ने आपस में गंभीरता से बातचीत नहीं की। अब कांग्रेस को शिकायत है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने उनके साथ धोखा किया तो राजस्थान, असम और पश्चिम बंगाल में दूसरी पार्टियों को कांग्रेस से शिकायत है कि उसने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया।
सोचें, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पांच सीटों की मांग कर रही थी और अब एक भी सीट पर नहीं लड़ रही है। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह कांग्रेस के लिए आत्मघाती है। लोकसभा चुनाव में जो सद्भाव बना था उस पर पानी फिर गया है। कांग्रेस के लिए हारने वाली सीटें छोड़ने का दांव चल कर सपा ने अपना खेल कर दिया। इसी तरह का काम कांग्रेस ने राजस्थान में हनुमान बेनिवाल की पार्टी आरएलपी से बात नहीं की। वे दो सीटें मांग रहे थे। जब तालमेल नहीं हुआ तो चार सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया। इसी तरह भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत ने भी दो विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। उधर असम में एक सीट पर गैर कांग्रेसी उम्मीदवार उतारने की सहमति बनी थी लेकिन बाद में कांग्रेस ने वहां भी अपना उम्मीदवार उतार दिया। पश्चिम बंगाल की छह सीटों पर लेफ्ट पार्टियों के साथ कांग्रेस के तालमेल की संभावना जताई जा रही थी लेकिन अंत में दोनों पार्टियां अलग अलग लड़ रही हैं।