जून 2023 में पटना में 17 विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई थी। उसके बाद जुलाई में बेंगलुरू में और फिर अगस्त के अंत में मुंबई में बैठक हुई थी। उस समय भाजपा कर्नाटक में मिली जीत से हवा में उड़ रही थी और कांग्रेस को तब लग रहा था कि 2023 के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में वह कमाल का प्रदर्शन करेगी। तभी उसने विपक्षी पार्टियों की एक भी मांग नहीं मानी। उसने गठबंधन को औपचारिक रूप देकर सीटों के बंटवारे को टाले रखा। योगेंद्र यादव जैसे लोगों ने कांग्रेस नेतृत्व में हवा भरे रखी कि वह पांच में से चार और नहीं तो कम से कम तीन राज्यों में तो जरूरत जीत रही है। तभी कांग्रेस ने ममता बनर्जी, नीतीश कुमार आदि किसी की बात नहीं सुनी और न तो सीटों के बंटवारे पर फैसला किया और न विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के संयोजक पर कोई फैसला किया।
सबको पता है कि अंत नतीजा क्या हुआ। कांग्रेस पांच में से सिर्फ एक तेलंगाना जीत पाई और मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में बुरी तरह हारी। नतीजों की आहट सुनते ही कांग्रेस की नींद खुली और चुनाव नतीजों के दिन ही उसने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक बुलाई, जिसे सबने ठुकरा दिया। कांग्रेस ने अपनी बढ़त गवां दी। वह बैकफुट पर आ गई, तब तक बाजी हाथ से निकल चुकी थी। अगर कांग्रेस ने सहयोगी पार्टियों को दबाने के लिए पांच राज्यों के नतीजों तक इंतजार नहीं किया होता और पहले ही तालमेल हुआ होता तो शायद नतीजे कुछ और होते। लेकिन कांग्रेस ने उस समय कमान अपने हाथ में रखने के लिए समय से समझौता नहीं किया।
अब चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस वही गलती कर रही है। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने श्रीनगर जाकर फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस से तालमेल किया। लेकिन उसने लोकसभा की तरह ‘इंडिया’ को पुनर्जीवित करने का प्रयास नहीं किया। पीडीपी से उसने बात तक नहीं की। इसी तरह जैसे ही चुनाव आयोग ने जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनावों की घोषणा की वैसे ही कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जिस तरह उसने लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन लटकाया ताकि राज्यों में जीत कर मनमाने तरीके से सीट बंटवारा करेंगे वैसे ही उसने महाराष्ट्र छोड़ा है। उसके लग रहा है कि जम्मू कश्मीर और हरियाणा में चार अक्टूबर को नतीजे आएंगे, जिसमें जीत जाएंगे और तब महाराष्ट्र में सीट बंटवारे की बात करेंगे तो अपर हैंड होगा और तब उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों को दबा कर मनमाफिक सीट ले लेंगे। इस चक्कर में कांग्रेस किसी की बात नहीं सुन रही है। न सीट बंटवारा हो रहा है और न सीएम का चेहरा पेश करने की बात हो रही है। कहीं ऐसा न हो कि फिर छब्बेजी बनने के चक्कर में कांग्रेस दुबेजी बने!