लोकसभा चुनाव खत्म हुए अभी छह महीने नहीं हुए हैं और इतने तामझाम से बना विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ कहीं दिख ही नहीं रहा है। कहीं भी ‘इंडिया’ ब्लॉक का नाम नहीं लिया जा रहा है। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी का गठबंधन हुआ और झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस, राजद का गठबंधन हुआ। लेकिन ‘इंडिया’ ब्लॉक की चर्चा नहीं हुई। अनेक राज्यों में उपचुनाव भी हो रहे हैं लेकिन उसमें तो विपक्षी गठबंधन नदारद ही दिख रहा है। सभी पार्टियां अपने अपने हिसाब से चुनाव लड़ रही हैं। गठबंधन का प्रयास हुआ भी तो वह सफल नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल और पंजाब से लेकर केरल तक सभी पार्टियां अपना अपना चुनाव लड़ रही हैं और एक दूसरे को हराने के लिए जी जान लगाए हुए हैं।
सोचें, उप चुनावों को मिनी आम चुनाव माना जा रहा है लेकिन उसमें भी पार्टियों ने तालमेल नहीं किया। उत्तर प्रदेश में, जहां विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को सबसे बड़ी सफलता मिली थी वहां भी गठबंधन नहीं रह सका। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस भ्रम में आ गए कि उत्तर प्रदेश की जीत उनकी है। तभी उन्होंने कांग्रेस से बात करने और उपचुनाव में उसको एडजस्ट करने की जरुरत नहीं समझी। उनको पता है कि ये उपचुनाव भाजपा की राजनीति के लिए कितने अहम हैं। अगर लोकसभा के बाद विधानसभा के उपचुनाव में भी भाजपा हारती है तो पार्टी के अंदर कलह बढ़ेगी, जिसका राजनीतिक लाभ विपक्षी गठबंधन को होगा। इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस को छोड़ कर एकतरफा तरीके से सात सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए। कांग्रेस के लिए दो हारने वाली सीटें छोड़ दीं, जिसके बाद कांग्रेस ने कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ेगी। कांग्रेस ने कहा कि गठबंधन कायम है लेकिन सपा के चुनाव चिन्ह पर ही सभी नौ सीटों पर लड़ा जाएगा। अब कांग्रेस के नेता इंतजार कर रहे हैं कि उपचुनाव में सपा हारे तो उसके गुब्बारे की हवा निकले।
इसी तरह पश्चिम बंगाल में छह सीटों के उपचुनाव हैं और लग रहा था कि कांग्रेस और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में तालमेल नहीं होगा तब भी कांग्रेस औरर लेफ्ट मोर्चे का तो तालमेल जरूर होगा। लेकिन क्या हुआ? वहां भी किसी पार्टी ने किसी से बात नहीं की। ममता ने एकतरफा तरीके से छह सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए। उसके बाद कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चा के भी उम्मीदवारों की घोषणा हो गई। ध्यान रहे आरजी कर अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद जैसा आंदोलन हो रहा है उसे देखते हुए इस बार का उपचुनाव लिटमस टेस्ट की तरह है। फिर भी किसी ने तालमेल की जरुरत नहीं समझी। ऐसे ही पंजाब में चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और आम आदमी पार्टी व कांग्रेस दोनों अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबले चारों सीटों पर बहुकोणीय हो गया है। भाजपा और अकाली दल के लिए मौका बना है। केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर तो पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला लेफ्ट फ्रंट के साथ है। इससे भाजपा उम्मीदवार को वहां स्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी।