उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले महाकुंभ को लेकर एक साथ कई किस्म के विवाद शुरू हो गए हैं। पिछले दिनों साधु संतों ने एक सम्मेलन करके तय किया था कि इस बार कुंभ में किसी और धर्म के व्यक्ति को दुकान खोलने या शिविर लगाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। साधु संतों ने इसके बारे में स्थानीय प्रशासन के लोगों के साथ बात की लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इससे इनकार कर दिया है। स्थानीय प्रशासन और मेला के आयोजकों का कहना है कि महाकुंभ में दुकानों के लिए जगह देने या शिविर की अनुमति देने के लिए नीलामी की प्रक्रिया होती है यानी सीधे प्रशासन किसी के आवेदन पर आवंटन नहीं करता है। बोली लगा कर जो ज्यादा पैसा देता है उसे जगह दी जाती है।
सो, जहां पैसे की बात हो वहां इस बात पर कौन ध्यान दे रहा है कि जगह लेने वाला हिंदू है, मुसलमान है या किसी और धर्म का है। हालांकि कहा जा रहा है कि साधु संत अपनी बात ऊपर यानी लखनऊ और दिल्ली पहुंचाने की कोशिश में हैं। इसी तरह साधु संतों ने तय किया था कि इस बार महाकुंभ में अखाड़ों के स्नान को शाही स्नान नहीं कहा जाएगा, बल्कि राजसी स्नान कहा जाएगा। लेकिन इस पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया है। दिल्ली मेट्रो में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से महाकुंभ का जो विज्ञापन दिया गया है उसमें मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और महाशिवरात्री के मौके पर होने वाले स्नान को शाही स्नान ही लिखा गया है।