सोचें, कांग्रेस में कैसे फैसले होते हैं और कांग्रेस की सरकारें किस तरह से काम करती हैं? जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान बेंच ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जाति होमोजेनस यानी समरूप नहीं है और इसमें भी जो ज्यादा पिछड़े और वंचित हैं उनको आरक्षण का लाभ देने के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जा सकता है तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा था कि इस फैसले को लागू करने वाला पहला राज्य तेलंगाना बनेगा। तब इस पर सवाल भी उठा लेकिन सबको पता है कि तेलंगाना में मडिगा और कुछ अन्य दलित समुदाय ऐसे हैं, जो आरक्षण के लाभ से वंचित हैं और बरसों से एससी आरक्षण में वर्गीकरण की मांग कर रहे हैं। पंजाब से लेकर बिहार तक इस तरह की मांग है। लेकिन मजबूत दलित जातियों ने वर्गीकरण का विरोध किया तो कांग्रेस बैकफुट पर आ गई।
इस बीच हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए तो साफ साफ वर्गीकरण दिखाई दिया। एक बड़ा समुदाय अलग अलग कारणों से भाजपा के साथ गया। जीत कर भाजपा ने सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में एससी के भीतर वर्गीकरण के फैसले को लागू कर दिया और कहा कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले 20 फीसदी आरक्षण में आधा यानी 10 फीसदी उन 36 जातियों को मिलेगा, जिनको अब तक सबसे कम लाभ मिला है। इसके बाद वाल्मिकी समुदाय के लोगों ने दीये जला कर इसका स्वागत किया। सोचें, हरियाणा ने लागू भी कर दिया लेकिन तेलंगाना सरकार बयान देने के बाद से अभी कमेटी ही बना रही है।